लैब में बनेंगे स्पर्म और एग, साइंस से बदल रही प्रजनन की परिभाषा

अब तक मां-बाप बनने के लिए नेचुरल प्रजनन ज़रूरी था, लेकिन अब साइंस उस सोच को पलटने वाला है।जापान की ओसाका यूनिवर्सिटी में चल रही रिसर्च इस दिशा में बड़ा कदम है। प्रोफेसर कात्सुहिको हायाशी और उनकी टीम एक ऐसी तकनीक विकसित कर रहे हैं जिससे लैब में ही इंसानी स्पर्म और एग तैयार किए जा सकेंगे..इस तकनीक का नाम है इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (In-Vitro Gametogenesis - IVG) और अगले सात साल में यह पूरी तरह इंसानों के लिए उपलब्ध हो सकती है।

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कैसे काम करती है ये तकनीक?

  • तकनीक का आइडिया जितना क्रांतिकारी है, प्रोसेस उतना ही जटिल लेकिन संभव है।
  • सबसे पहले किसी व्यक्ति की स्किन या ब्लड सेल ली जाती है
  • उसे स्टेम सेल में बदला जाता है
  • फिर उन स्टेम सेल्स से जर्म सेल्स बनाई जाती हैं
  • इन्हीं जर्म सेल्स को लैब में स्पर्म या एग में बदला जाता है
  • इस पूरी प्रक्रिया को वैज्ञानिकों ने पहले ही चूहों पर सफलतापूर्वक टेस्ट कर लिया है। अब इंसानों की बारी है।

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ये तकनीक किनके लिए है गेमचेंजर?

  • वे कपल जो इनफर्टिलिटी से जूझ रहे हैं
  • LGBTQ+ कपल्स जो बायोलॉजिकल संतान चाहते हैं
  • वे लोग जिनकी फर्टिलिटी कैंसर जैसी बीमारियों से प्रभावित हुई है
  • और वे महिलाएं जो ज्यादा उम्र में मां बनना चाहती हैं

हायाशी की टीम ने चूहों पर एक ऐसा प्रयोग किया जिसमें दो मेल पैरेंट्स से एक हेल्दी बेबी माउस पैदा किया गया। ये साफ संकेत है कि लैब में सिर्फ एग और स्पर्म नहीं बनेंगे, बल्कि प्रजनन का पूरा सिस्टम फिर से लिखा जा सकता है।

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दुनिया भर में इस रेस में कौन-कौन?
Conception Biosciences नाम की एक स्टार्टअप कंपनी अमेरिका में इसी तकनीक पर काम कर रही है। इसे OpenAI के को-फाउंडर Sam Altman समेत कई बड़े नामों का समर्थन प्राप्त है।

इनका मानना है कि लैब में स्पर्म और एग तैयार करना न सिर्फ इनफर्टिलिटी की समस्या सुलझा सकता है, बल्कि गिरती जनसंख्या दर को भी कंट्रोल कर सकता है।

मां बनने की उम्र अब मायने नहीं रखेगी
यह तकनीक महिलाओं को 40 या 50 की उम्र में भी बायोलॉजिकल मदर बनने का मौका दे सकती है। यानी फर्टिलिटी से जुड़ी पारंपरिक सीमाएं टूटने वाली हैं। बायोलॉजिकल क्लॉक अब बीते समय की बात हो सकती है।

क्या ये तकनीक पूरी तरह सुरक्षित है?
यह सवाल अब भी सबसे अहम है।मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी और एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का मानना है कि लैब में तैयार स्पर्म और एग से जन्म लेने वाले बच्चों की सेहत और दीर्घकालिक प्रभावों पर गहराई से अध्ययन ज़रूरी है।

प्रोफेसर हायाशी खुद भी मानते हैं कि नैतिकता और सुरक्षा इस तकनीक की सबसे बड़ी कसौटियां होंगी। उनका कहना है,
"हमने एक चूहा बनाया जो दो मेल पेरेंट्स से था। यह नेचुरल नहीं है। अगर विज्ञान प्रकृति से बाहर की चीजें बनाता है, तो हमें बेहद सावधानी रखनी होगी।"

यह सिर्फ एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं, बल्कि भविष्य की झलक है।जहां संतान के लिए शरीर की सीमाएं मायने नहीं रखेंगी।जहां प्यार, तकनीक और विज्ञान मिलकर नई ज़िंदगी को जन्म देंगे।यह वो दौर है, जब एक सेल से परिवार बन सकेगा — और वो भी लैब में।फ्यूचर अब कल्पना नहीं, रियलिटी के दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है।

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