उत्पन्ना एकादशी : मुर दैत्य के संहार से जन्मा पावन व्रत

भविष्य पुराण के अनुसार, इस एकादशी की महिमा श्रीकृष्ण ने स्वयं अर्जुन को सुनाई। सतयुग में मुर नाम का एक अत्याचारी दैत्य इतना शक्तिशाली था कि उसने देवताओं को परास्त कर देवलोक पर कब्ज़ा कर लिया। भयभीत देवता शिवजी से होते हुए विष्णुजी की शरण में पहुँचे।

भगवान विष्णु ने देवताओं के साथ युद्ध छेड़ा और सौ वर्षों तक मुर दैत्य से लड़ा। थककर वे बदरिकाश्रम की हेमावती गुफा में विश्राम करने लगे। तभी मुर दैत्य सोए हुए भगवान पर आक्रमण करने पहुँचा।

उसी क्षण भगवान के शरीर से एक तेजस्विनी दिव्य स्त्री प्रकट हुई—एकादशी देवी। उसने चुनौती देकर मुर से युद्ध किया और अंततः उसका वध कर दिया।

जब भगवान विष्णु जागे और दैत्य को मृत देखा, तो देवी ने बताया कि उसने ही आपकी रक्षा की है। प्रसन्न होकर भगवान ने कहा—
“तुम जिस दिन उत्पन्न हुई हो, वही दिन उत्पन्ना एकादशी कहलाएगा। जो भक्त इस व्रत का पालन करेगा, वह पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होगा।”

श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा—
“एकादशी व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ है। यह मनुष्य को सांसारिक दुखों से निकालकर परम शांति और मुक्ति प्रदान करता है।”

उत्पन्ना एकादशी इसलिए न केवल एक व्रत है, बल्कि देवत्व की उपस्थिति और दैवी संरक्षण का प्रतीक है—एक ऐसा दिन जो हर भक्त के जीवन में शुद्धता, शक्ति और कृपा का संचार करता है।

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