सुमित्रानंदन पंत: व्यक्तित्व, कृतित्व और साहित्यिक योगदान

सुमित्रानंदन पंत (20 मई 1900 – 28 दिसंबर 1977) हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। इस युग में जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जैसे कवियों का योगदान भी महत्वपूर्ण रहा। पंत का जन्म उत्तराखण्ड के बागेश्वर जिले के कौसानी ग्राम में हुआ। उनकी कविताओं में प्रकृति, सौंदर्य और मानवीय अनुभवों का अद्भुत समन्वय मिलता है।


पंत का जन्म 20 मई 1900 को हुआ और जन्म के छह घंटे बाद ही उनकी मां का निधन हो गया। उनका पालन-पोषण दादी ने किया। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने अल्मोड़ा के गवर्नमेंट हाईस्कूल में प्राप्त की, जहाँ उन्होंने अपना नाम गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रखा। उच्च शिक्षा के लिए वह काशी गए और बाद में इलाहाबाद के म्योर कॉलेज में अध्ययन किया।

महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने महाविद्यालय छोड़ दिया और घर पर ही हिंदी, संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी का अध्ययन किया। आर्थिक संकट और परिवारिक कठिनाइयों के बावजूद पंत ने साहित्य सृजन जारी रखा। उन्होंने 1938 में प्रगतिशील मासिक पत्रिका ‘रूपाभ’ का संपादन किया और श्री अरविन्द आश्रम की यात्राओं से आध्यात्मिक चेतना विकसित की।

साहित्यिक यात्रा:
सुमित्रानंदन पंत ने मात्र सात वर्ष की आयु में कविता लिखना प्रारंभ किया। उनकी प्रारंभिक कविताएँ छायावादी दौर की सूक्ष्म भावनाओं और प्रकृति प्रेम से ओतप्रोत थीं। 1926 में प्रकाशित उनका काव्य संकलन ‘पल्लव’ उन्हें हिंदी के नवीन कवियों में स्थापित करने वाला साबित हुआ।

उनकी साहित्यिक यात्रा को तीन चरणों में बांटा जा सकता है:

छायावादी चरण: प्रकृति और सौंदर्य का चित्रण।

प्रगतिवादी चरण: समाजवादी आदर्शों से प्रेरित कविताएँ।

अध्यात्मवादी चरण: अरविन्द दर्शन और मानव कल्याण पर आधारित कविताएँ।

उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं – पल्लव, वाणी, ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम। उनके 28 पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएँ, पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं।

विचारधारा:
पंत का साहित्य हमेशा 'सत्यं, शिवं, सुन्दरम्' के आदर्शों से प्रभावित रहा। उनकी प्रारंभिक कविताएँ प्रकृति सौंदर्य की छाया में थीं, प्रगतिवादी दौर में समाज और मानव कल्याण पर केंद्रित रचनाएँ रचीं, और बाद के चरण में अरविन्द दर्शन की आध्यात्मिक चेतना उनकी कविताओं में झलकती है।

पुरस्कार एवं सम्मान:
सुमित्रानंदन पंत को उनके साहित्यिक योगदान के लिए अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें प्रमुख हैं:

पद्मभूषण (1961)

साहित्य अकादमी पुरस्कार (1960, कला और बूढ़ा चाँद)

भारत ज्ञानपीठ पुरस्कार (1968, चिदंबरा)

सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार

संग्रहालय और स्मृति:
उत्तराखण्ड के कौसानी ग्राम में उनके बचपन के घर को 'सुमित्रानंदन पंत वीथिका' के रूप में संग्रहालय में परिवर्तित किया गया। यहाँ उनके व्यक्तिगत वस्त्र, कलम, चश्मा, पुरस्कार, पांडुलिपियाँ और पत्रावली सुरक्षित हैं। प्रत्येक वर्ष पंत व्याख्यान माला का आयोजन किया जाता है। इलाहाबाद के हाथी पार्क का नाम भी 'सुमित्रानंदन पंत बाल उद्यान' रखा गया है।


सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के ऐसे कवि हैं जिन्होंने छायावाद, प्रगतिवाद और आध्यात्मिक चेतना के माध्यम से अपनी कविताओं में सौंदर्य, समाज और मानव कल्याण का अद्वितीय समन्वय स्थापित किया। उनकी रचनाएँ आज भी साहित्यिक दृष्टि से प्रासंगिक हैं और उनके योगदान का सम्मान भारतीय साहित्य में सदैव याद किया जाएगा।

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