भगवान श्री कृष्ण के शाश्वत यज्ञ है झूलन/ आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र।

सुपौल : पांचदिवसीय झूलन आज से शुरू हो गया है। यह झूलन का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष में होता है जो श्रावणी पूर्णिमा के रोज विश्राम होता है। झूलन का भाव यह है कि, भगवान राधा कृष्ण झूला झूलते थे जो सत्य प्रेम का स्वरूप होता है । यह झूलन भगवान श्री कृष्ण राधा ने मानसून के आधार पर भी श्रावण मास में वर्षा ऋतु के आने पर प्रेम के प्रतीक स्वरूप दोनों ने झूला पर बैठकर के भगवान राधा और कृष्ण झूला झूले ।इस अवसर पर भगवान के भक्तगण कलात्मक रूप से झूले को सजाते हैं। झूला सोने का चांदी का या लकड़ी का बनाया जाता है। विभिन्न प्रकार के रंगों से रंग कर फूल माला इत्यादि से सजा करके भगवान की मूर्ति को उसमें रख कर झुलाया जाता है ।तब भक्त लोग कीर्तन भजन करते हुए आनंद भक्ति भाव से भगवान राधा कृष्ण को झूला झूलाते हैं। यह एक आनंद उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार वृंदावन के प्रसिद्ध महोत्सव के रूप में होता है, जिसको पूरा देश अत्यधिक धूमधाम से मनाते है। यह त्यौहार भक्तों के लिए केवल अनुष्ठान ही नहीं है बल्कि भक्ति भाव एवं प्रेम  का द्योतक भी है। भागवत महापुराण एवं अनेक श्रूतियों के अनुसार वृंदावन में वर्षा ऋतु के आगमन पर गोपिया भगवान के पुनर्मिलन की उद्देश्य से झूला बनाती थी और भगवान को पास में बैठा करके उस झूले पर राधा रानी को पधरवा कर के और अन्य गोपिया झूले को झूलाती थी। श्श्रावण  में जब वर्षा होती थी तो वन उपवन में अनेक चिड़ियों एवं मोड़ के नृत्य एवं कलरव से भगवान श्री कृष्ण एवं राधा प्रेम के उमंग में डूब जाते थे, और प्रसन्नता के द्वारा अपने भक्तों के ऊपर आशीर्वाद का वरदान देते थे। यह झूला भगवान श्री कृष्ण के शाश्वत यज्ञ में भाग लेने का एक विशेष यज्ञ है। राधा की भावनाओं को कृष्ण के साथ उनके वियोग और पुनर्मिलन को इस समय उनके गीतों और भजनों में गहराई रूप से प्रस्तुत किया जाता है।

रिपोर्टर : ललन कुमार झा 

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