पत्नि को प्रेग्नेंट चाहे जो करें , बच्चा होगा पति की जिम्मेदारी

नई दिल्ली-सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर साफ कर दिया है – अगर कोई बच्चा शादी के दौरान जन्मा है, तो वह पति का ही संतान माना जाएगा, चाहे जैविक पिता कोई और क्यों न हो। कोर्ट ने कहा कि विवाह संस्था की मर्यादा और समाज की स्थिरता बनाए रखने के लिए यह कानून बेहद ज़रूरी है।

क्या कहता है कानून?
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 112 के अनुसार –
अगर कोई बच्चा शादी के दौरान या शादी के छह महीने बाद पैदा होता है, तो उसे पति का वैध संतान माना जाएगा।
इसे झूठा साबित करने के लिए पति को यह दिखाना होगा कि वह उस समय पत्नी के साथ था ही नहीं, यानी “संभोग की संभावना” नहीं थी।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि DNA टेस्ट का आदेश तभी दिया जाएगा जब इस बात के पक्के सबूत हों कि पति ही जैविक पिता नहीं है हालिया मामले, जहां यह कानून लागू हुआ

उत्तर प्रदेश, 2023
DNA टेस्ट से यह साबित हुआ कि बच्चा पत्नी के विवाहेतर संबंध से पैदा हुआ था। फिर भी अदालत ने कहा – बच्चा शादी के दौरान पैदा हुआ, इसलिए पालन-पोषण की जिम्मेदारी पति की ही होगी।

दिल्ली, 2021
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा – अगर पति चुप रहा या उसने सहमति दी, तो वह भी कानूनी रूप से जिम्मेदारी तय करने में मायने रखता है।

बहस के दो पहलू
महिला अधिकार संगठन
उनका कहना है कि यह कानून बच्चों को 'अवैध' कहलाने से बचाता है और उन्हें कानूनी सुरक्षा देता है। इससे बच्चों के अधिकारों की रक्षा होती है।

पुरुष अधिकार कार्यकर्ता
उनका तर्क है कि यह पुरुषों के साथ अन्याय है। यदि पति जैविक पिता नहीं है, तो उस पर ज़िम्मेदारी क्यों थोपी जाए? उनका कहना है कि DNA टेस्ट का कानूनी हक मिलना चाहिए ताकि सच्चाई सामने आ सके।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कई परिवारों और बच्चों के लिए कानून की स्थिति को स्पष्ट करता है। लेकिन साथ ही, यह फैसला समाज में एक नई बहस को भी जन्म दे रहा है – बच्चों की वैधता बनाम पुरुषों के अधिकार।कानून का मकसद सामाजिक स्थिरता है, पर सवाल ये भी उठता है – क्या हर स्थिरता न्यायपूर्ण भी होती है?

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.