विक्रम-I रॉकेट: भारत का पहला प्राइवेट रॉकेट
भारत की निजी कंपनी Skyroot Aerospace ने एक नया रॉकेट तैयार किया है, जिसका नाम है विक्रम-I। यह भारत का पहला प्राइवेट ऑर्बिटल रॉकेट है। इसका मतलब है कि यह रॉकेट खुद सैटेलाइट को अंतरिक्ष की कक्षा में भेज सकता है। इस रॉकेट को देखकर भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक नया अध्याय शुरू हुआ है।
रॉकेट को ऑर्बिट में पहुँचाने के लिए उसे सिर्फ ऊपर उठना नहीं होता, बल्कि बहुत तेज गति भी चाहिए। अगर कोई सैटेलाइट पृथ्वी के चारों ओर स्थिर रहना चाहता है, तो उसे लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़नी पड़ती है। रॉकेट के पीछे से गर्म गैस निकलती है, और यह रॉकेट को ऊपर की ओर धकेलती है। यही प्रक्रिया उसे अंतरिक्ष तक पहुँचाती है।
रॉकेट का ईंधन और ऑक्सीडाइज़र एक साथ मिलकर रासायनिक प्रतिक्रिया करते हैं। इससे बहुत गर्म गैस बनती है जो रॉकेट को ऊपर उठाती है। चूंकि अंतरिक्ष में हवा नहीं होती, इसलिए रॉकेट को अपना ईंधन और ऑक्सीडाइज़र अपने साथ रखना पड़ता है।
रॉकेट कई हिस्सों में बना होता है, जिन्हें स्टेज कहा जाता है। पहला स्टेज रॉकेट को जमीन से ऊपर उठाता है और जब इसका ईंधन खत्म हो जाता है तो इसे अलग कर दिया जाता है। दूसरा स्टेज फिर रॉकेट को और ऊँचाई देता है। इसी तरह एक-के-बाद एक स्टेज काम करके अलग होते जाते हैं और आखिरी स्टेज सैटेलाइट को लक्षित ऑर्बिट में पहुँचाता है।
विक्रम-I रॉकेट चार स्टेज वाला है। पहले तीन स्टेज ठोस ईंधन वाले हैं, जो शुरुआत में ज़रूरी जोर देते हैं। आखिरी स्टेज तरल ईंधन वाला है, जो सैटेलाइट को सही कक्षा में पहुँचाने में मदद करता है। यह रॉकेट छोटे और माइक्रो सैटेलाइट को किफायती और तेज़ी से अंतरिक्ष में भेजने के लिए बनाया गया है। रॉकेट की डिज़ाइन हल्की और आधुनिक है। इसके कई हिस्से 3D प्रिंटेड हैं और यह नई तकनीक का इस्तेमाल करता है।
विक्रम-I से भारत में निजी स्पेस कंपनियों के लिए नए अवसर खुलते हैं। यह सिर्फ सैटेलाइट लॉन्च करने का साधन नहीं है, बल्कि नई तकनीक और नवाचार को बढ़ावा देने वाला कदम है। इससे भारत की अंतरिक्ष यात्रा में तेजी आएगी और भविष्य में और अधिक प्राइवेट स्पेस मिशन संभव होंगे।
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