चिंता से चिंतन तक का सफ़र
मनुष्य का जीवन ईश्वर का सबसे बड़ा और अनमोल तोहफा है, जिसका प्रत्येक प्राणी को ईश्वर का शुक्रगुज़ार होना चाहिए |
आज प्रत्येक प्राणी जीवन में अनेकों चिंताओं से गृहसित है जिसके कारण प्राणियों में सद्भाव खत्म होता नज़र आ रहा है | भारत जितनी तीव्र गति से प्रगति की ओर बढ़ रहा है उतना ही भारत के लोग तनाव और पीड़ा में उलझते जा रहे हैं | हर उम्र के लोग अपने -अपने अनुभवों के हिसाब से पीड़ा और चिंता ज़ाहिर करते हैं और ताज्जुब तब होता है जब आप किसी 16-18 साल के बच्चों से पूछेंगे कि उनके जीवन में क्या कोई पीड़ा है ? उनका जवाब आपको और भी ज्यादा चिंता में डाल देगा | शयद यही एक कारण है कि ज़्यादातर लोग केवल इसलिए परेशानी और चिंता में हैं क्योंकि सामने वाला या उनके आस पास लोग परेशानी में हैं |
चिंता करना किसी का स्वभाव हो सकता है परन्तु किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता | लोग अपनी पूरी सकारात्मकर उर्जा को व्यर्थ की चिंताओं में लगा देते हैं | आज के युग में इंसान को चिंता और चिंतन के अंतर को बेहद संजीदगी से समझने की ज़रूरत है. चिंता से जहां मन अशांत रहता है वहीं चिंतन से मन में एकाग्रता, शांति, उत्साह और प्रेम का भाव उत्पन्न होता है। चिंतन जीवन को प्रकाश की ओर ले जाता है। चिंतनशील व्यक्ति के लिए कोई न कोई सुगम मार्ग अवश्य मिल जाता है। वास्तव में चिंता ही चिंतन को जन्म देती है।
मन जब कुछ चाहे और वह चाहत पूरी न हो या जो हमारे पास है, उसके जाने का डर सताए या फिर किसी काम में देरी होने लगे, तो मन परेशान हो जाता है। इसे चिंता कहते हैं। इसमें मन व बुद्धि अशांत हो जाते हैं, चित्त अपनी सामान्य स्थिति से नीचे आने लगता है और ऊर्जा अधोगति में बहने लगती है। जब मन में किसी विचार के मनन से एकाग्रता, शांति, उत्साह और प्रेम का भाव पैदा होने लगे, तो उसे चिंतन कहते हैं।
जीवन को सकारात्मक गति देने के लिए मनुष्य को चिंता न करके चिंतन करना चाहिए। चिंता से जहां मन अशांत रहता है वहीं चिंतन से मन में एकाग्रता, शांति, उत्साह और प्रेम का भाव उत्पन्न होता है। चिंतन जीवन को प्रकाश की ओर ले जाता है। चिंतनशील व्यक्ति के लिए कोई न कोई सुगम मार्ग अवश्य मिल जाता है। वास्तव में चिंता ही चिंतन को जन्म देती है। जब व्यक्ति किसी समस्या से ग्रस्त होता है तभी वह उस समस्या के बारे में चिंतन करता है और चिंतन से समस्या का समाधान निकालता है। प्रत्येक मनुष्य के लिए यह स्वाभाविक है कि वह चिंता, डर, लोभ, क्रोध, भय, प्रेम, घृणा, करुणा आदि मानवीय प्रवृत्तियों से युक्त रहता है। मनुष्य को चाहिए कि वह इन स्वाभाविक प्रवृत्तियों से बिना घबराए इनका सामना करे और आगे बढ़े। श्री कृष्ण ने भविष्य की चिंता व्यर्थ बताई है। उन्होंने वर्तमान में जीने को सर्वोचित बताया है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में चिंता न करने की बात कही है। वह कहते हैं कि क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? तुम क्या लेकर आए थे जो खो गया है? कर्म पर तुम्हारा अधिकार है फल पर नहीं। अत: हमें चिंता से उबरने के लिए उस चिंता के विषय में चिंतन करना चाहिए। चिंतन ही चिंता समाधान की कुंजी है। चिंतन के पश्चात जो कार्य किया जाता है, उसकी सफलता में संदेह नहीं रहता है।
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