शुद्ध प्रेम की परिभाषा को बताती हरिवंशराय बच्चन की ये खूबसूरत रचना

फरवरी जिसे हम सब प्रेम का माह मानते है,साथ ही फरवरी माह में ही प्रकृति के यौवन का श्रृंगार भी होता है .इसलिए यह माह और भी ख़ास हो जाता है .हर तरफ फूल खिले हुए नजर आते हैं, हर तरफ बस खुशियाँ ही खुशियाँ नजर आती है . इस मौसम में हर किसी के मन में अनुराग उत्पन्न हो उठता है . प्रेम की ऐसी सुखद अनुभूति होती है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है . प्रेम के एहसास को शब्दों में बयां कर पाना बहुत ही मुश्किल होता है . प्रेम में मिलने वाला सुख और प्रेम में मिलने वाला दर्द सब बहुत ही अद्भुत होता है .आजकल देखने को मिलता है कि अधिकतर प्रेमी जोड़े अपने प्रेम को दुनिया के समक्ष रखने में ही लगे रहते हैं और साथ ही एक दूसरे को यह साबित करने में लगे रहते हैं कि वे अपने प्रेमी से या प्रेमिका से अधिक प्रेम करते है. लेकिन कवि हरिवंशराय बच्चन का मानना है कि प्रेम को दिखाने की कोई जरूरत नहीं होती बस प्रेम में मिलने वाली अनुभूति को महसूस करने की जरूरत होती है ...आइये जानते हैं कि एक कवि की नजर में शुद्ध प्रेम क्या है ...

प्यार किसी को करना लेकिन
कह कर उसे बताना क्या
अपने को अर्पण करना पर
और को अपनाना क्या

गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गा कर उसे सुनाना क्या
मन के कल्पित भावों से
औरों को भ्रम में लाना क्या

ले लेना सुगंध सुमनों की
तोड उन्हे मुरझाना क्या
प्रेम हार पहनाना लेकिन
प्रेम पाश फैलाना क्या

त्याग अंक में पले प्रेम शिशु
उनमें स्वार्थ बताना क्या
देकर हृदय हृदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या

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