तिथि: भारतीय पंचांग की आत्मा और आधुनिक लोगों की उदासीनता
भारतीय संस्कृति में समय की गणना केवल घड़ी या कैलेंडर के आधार पर नहीं, बल्कि चंद्रमा के गति चक्र पर आधारित रही है। इस गणना की मूल इकाई को “तिथि” कहा जाता है। तिथि केवल एक दिन का नाम नहीं, बल्कि वह एक खगोलीय और आध्यात्मिक महत्व रखने वाली अवधारणा है, जो हमारे जीवन के हर शुभ कार्य, व्रत, पर्व, और अनुष्ठान से जुड़ी हुई है।
तिथि क्या है?
‘तिथि’ का अर्थ है – चंद्रमा द्वारा सूर्य से 12 अंश की दूरी तय करने में जितना समय लगता है।
एक चंद्र मास में कुल 30 तिथियाँ होती हैं – 15 शुक्ल पक्ष की और 15 कृष्ण पक्ष की।
शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कलाएँ बढ़ती हैं और कृष्ण पक्ष में घटती हैं। इस प्रकार, हर तिथि का अपना खगोलीय प्रभाव और आध्यात्मिक महत्व होता है।
तिथियाँ :-
- प्रतिपदा – नई शुरुआत का प्रतीक।
- द्वितीया से पंचमी – सामाजिक और धार्मिक कार्यों के लिए शुभ मानी जाती हैं।
- अमावस्या – आत्मचिंतन, पितृ तर्पण और साधना का दिन।
- पूर्णिमा – प्रकाश, ज्ञान और पूर्णता का प्रतीक।
तिथि का महत्व
भारत के प्राचीन ग्रंथों — जैसे सूर्य सिद्धांत, पंचांग दर्शन, और धर्मशास्त्रों — में तिथि को केवल समय मापने का साधन नहीं, बल्कि जीवन के लयबद्ध प्रवाह के रूप में देखा गया है।
प्रत्येक तिथि में विशेष ऊर्जा और प्रकृति का कंपन होता है, जिसका प्रभाव मानव मन, शरीर और भावनाओं पर पड़ता है। यही कारण है कि विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, व्रत, उपवास आदि कार्य तिथियों के अनुसार किए जाते हैं।
आधुनिक समाज में तिथि की उपेक्षा
आज के डिजिटल युग में, जहाँ लोग ग्रेगोरियन कैलेंडर (English Calendar) पर निर्भर हैं, वहीं तिथियों का ज्ञान धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।
बहुत से शिक्षित लोग यह भी नहीं जानते कि आज कौन-सी तिथि चल रही है या अगली एकादशी कब है।
इसका कारण है —
- पश्चिमी समय गणना प्रणाली का प्रभाव,
- शहरी जीवन की व्यस्तता,
- धार्मिक परंपराओं से दूरी,
- और प्राचीन ज्ञान को पुरातन मान लेना।
परिणामस्वरूप, लोग केवल त्योहार आने पर “गूगल” या “कैलेंडर ऐप” देखकर तिथि जानने लगे हैं, पर उसकी सांस्कृतिक गहराई और आध्यात्मिक अर्थ समझने का प्रयास नहीं करते।
तिथि को समझने की आवश्यकता
तिथि केवल “कौन-सा पर्व कब है” बताने के लिए नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने का माध्यम है।
यदि हम तिथियों के अनुसार उपवास, साधना, या जीवनचर्या रखें, तो हमारी शारीरिक लय, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति में वृद्धि होती है।
तिथियों के महत्व —
एकादशी को उपवास रखने से शरीर का डिटॉक्स होता है।
पूर्णिमा और अमावस्या पर ध्यान करने से मन स्थिर होता है।
सप्तमी या नवमी जैसे दिन विशेष देवताओं की आराधना के लिए शुभ माने जाते हैं।
निष्कर्ष -
भारतीय पंचांग की “तिथि” केवल समय का पैमाना नहीं, बल्कि संस्कृति, खगोल और अध्यात्म का संगम है।
आधुनिकता के इस युग में, जब हम हर चीज़ को “कैलेंडर रिमाइंडर” के भरोसे छोड़ देते हैं, तब यह आवश्यक है कि हम अपनी जड़ों से पुनः जुड़ें — तिथि, नक्षत्र, योग और करण को समझें।
यह समझ हमें न केवल हमारे त्योहारों का सही अर्थ सिखाएगी, बल्कि जीवन की लय और प्रकृति के साथ संतुलन भी प्रदान करेगी।
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