तुलसी देवी : श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम उपहार

हर कृष्ण मंदिर में दीपों की रोशनी और भजन के सुरों के बीच एक दिव्य हरियाली झिलमिलाती है — वह तुलसी देवी हैं, भगवान श्रीकृष्ण की परम प्रिय भक्त।
वह केवल एक पौधा नहीं, बल्कि भक्ति की जीवित मूर्ति हैं — जो भक्त और भगवान के बीच प्रेम का सेतु बनती हैं।


तुलसी देवी का दिव्य परिचय

स्कंद पुराण में वर्णन है कि तुलसी देवी भगवान विष्णु की सबसे पवित्र भक्त हैं, जो सदा उनके चरणों में निवास करती हैं। उन्होंने पृथ्वी पर अवतरित होकर हमें यह अवसर दिया कि हम तुलसी की सेवा कर श्रीकृष्ण के निकट पहुँच सकें।
तुलसी की पूजा केवल प्रतीक नहीं — यह प्रत्यक्ष भक्ति है।


क्यों तुलसी सबसे श्रेष्ठ उपहार हैं?

सोना, रत्न या कीमती वस्तुएँ भगवान को प्रसन्न नहीं कर सकतीं।
परंतु तुलसी दल — प्रेमपूर्वक अर्पित किया गया — भगवान श्रीकृष्ण के हृदय तक सीधा पहुँचता है।

पद्म पुराण में कहा गया है –

“तुलसीदलमात्रेण जलस्य चुलुकेन वा,
 विक्रीणीत स्वं आत्मानं भक्तेभ्यो भक्तवत्सलः॥”

 अर्थात् — भगवान तुलसी के एक पत्ते से ही अपने भक्त के वश में हो जाते हैं।

इसलिए तुलसी देवी केवल पूजा का भाग नहीं, प्रेम और समर्पण का सर्वोत्तम उपहार हैं — जो हर भक्त भगवान को दे सकता है।


 घर में तुलसी : शुभता और शांति का वास

जहाँ तुलसी होती हैं, वहाँ दिव्यता निवास करती है।
गरुड़ पुराण कहता है —

 “यत्र तुलसी वर्तते तत्र देवाः सर्वदा वसन्ति।”
   जहाँ तुलसी हैं, वहाँ देवता सदा रहते हैं।

प्रत्येक भक्त को अपने घर में तुलसी की सेवा करनी चाहिए — प्रतिदिन जल, दीप और नम्रता से प्रणाम करें। यही साधना आपके हृदय में श्रीकृष्ण प्रेम का संचार करती है।


 कृष्ण लीला में तुलसी का योगदान

वृंदावन की लीलाओं में तुलसी देवी राधा-कृष्ण के मिलन में सहायक बनती हैं।
गोवर्धन पूजा में भी हर व्यंजन के ऊपर तुलसी पत्र रखकर ही अर्पण किया जाता है — क्योंकि तुलसी के बिना कोई भोग पूर्ण नहीं होता।


 भक्ति का सबसे सुंदर उपहार

तुलसी देवी भक्ति का हृदय हैं।
यदि आप भगवान को कुछ देना चाहते हैं — तो सोना नहीं, रत्न नहीं —
एक तुलसी दल, प्रेम से अर्पित करें।


इसलिए तुलसी को अपने जीवन का हिस्सा बनाइए क्योंकि —
तुलसी दल ही वह सर्वोत्तम उपहार है,
जो श्रीकृष्ण के हृदय को छू लेता है,
और भक्त के जीवन में शांति, प्रेम और कृपा का संचार करता है। 

 

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