क्रिकेट में क्या है अल्ट्रा-एज टेक्नोलॉजी? कैसे करता है काम....

अगर आप क्रिकेट देखने के शौकीन हैं तो आपने देखा ही होगा कि मैच के दौरान अल्ट्रा-एज टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है. ये टेक्नोलॉजी डिसीजन रिव्यू सिस्टम यानी DRS का हिस्सा है. ये टेक्नोलॉजी गेम के दौरान बैट, पैड और कपड़ों से क्रिएट हुए साउंड के बीच में अंतर करने के काम आती है. लेकिन, बहुत कम ही लोगों को पता होता है कि ये टेक्नोलॉजी आखिर काम कैसे करती है. आइए जानते हैं अल्ट्राएज टेक्नोलॉजी के बारे में.
क्या है Ultra-Edge टेक्नोलॉजी?
क्रिकेट में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल लंबे वक्त से हो रहा है. स्टंप में कैमरा और माइक का यूज किया जाता है. ऐसी कई टेक्नोलॉजी हैं, जो आपको क्रिकेट में देखने को मिलती हैं. बात करें Ultra Tech टेक्नोलॉजी की, तो ये स्किनोमीटर का एडवांस वर्जन है, जो एज डिटेक्शन के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
Ultra-Edge टेक्नोलॉजी कैसे काम करती है?
दरअसल, बल्लेबाज के पीछे स्टंप माइक का एक सिस्टम होता है और स्टेडियम के चारों ओर कैमरे लगाए जाते हैं जो गेंद और उससे होने वाली ध्वनि पर नजर रखते हैं. बल्ले से टकराने पर गेंद एक विशेष ध्वनि उत्पन्न करती है जिसे विकेट द्वारा पिक कर लिया जाता है और ट्रैकिंग स्क्रीन पर डिटेक्ट किया जाता है. ऐसे में अगर गेंद ने बल्ले को हल्का सा छू लिया तो पता चल जाता है और आउट देने या न देने का निर्णय लिया जाता है. स्टंप में मौजूद माइक फ्रीक्वेंसी लेवल के आधार पर बैट, पैड और बॉडी से निकलने वाले साउंड के बीच अंतर करने में सक्षम होते हैं.
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