इस गाँव की महिलायें नहीं लगाती सिंदूर, इसके पीछे है अजीब वजह!

श्रृंगार करना हर महिला को पसंद होता है. फिर चाहे वो शादी से पहले हो या शादी के बाद हालाँकि, शादी के बाद महिलाओं को कुछ चीजें आवश्यक रूप से करनी होती हैं जैसे मांग में सिंदूर पीरों में पायल, हाथों में चूड़ियाँ और ऐसे ही कई सारी तमाम चीजें जो महिलाओं को अपनी शादी के बाद जरुर पहननी उर करनी पड़ती हैं. ये सभी चीजें महिलाओं को शुहगन होने का एहसास दिलाती हैं. इन सभी चीजों से उनकी काफी हद तक भावनाएं जुड़ जाती हैं. वहीँ ये सब कुछ सनातनी महिलएं ही नहीं बल्कि अन्य धर्म की महिलएं भी करती हैं. सभी धर्म में अपने अपनी चीजें होती हैं जिन्हें पहन ओढ़ कर महिलाओं को उनका शादीशुद जीवन बिताना पड़ता है. लेकिन इन सबके बीच अगर हम आपसे कहें की एक गाँव ऐसा भी है जहाँ महिलाएं शादी हो जाने के बाद भी श्रृंगार करना तो दूर माँग में सिन्दूर तक नहीं भारती हैं. आइये जानते हैं इस विचित्र गाँव के बारे में विस्तार से,
हालाँकि अब महिलएं काफी हद तक मॉडर्न हो गयी हैं. उन्हें ये सब करना किसी पुराणी परंपरा लगती है जिसे वो समय के साथ बदला चाहती हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के संदबाहरा गाँव में महिलाएं सोलह श्रृंगार तो क्या बल्कि किसी खाट या फिर लकड़ी से बांयी किसी चीज पर बैठती तक नहीं है. दरअसल, पुरानी परंपरा के चलते ये सभी चीजें महिलाओं को करनी पड़ती हैं. ये परंपरा गांव में सदियों पहले एक देवी के प्रकोप के कारण बनाई गई थी. ग्रामीणों का कहना है कि अगर कोई भी गांव में इसे तोड़ने की जुर्रत करता है तो गांव में आफत आ जाती है, जिसके कारण ये परंपरा आज तक बदस्तूर जारी है. .गांव में ही एक पहाड़ी है, जहां कारीपठ देवी रहती है.गांव प्रमुख की मानें तो 1960 में एक बार गांव के लोगों ने इस परंपरा को तोड़ा था, जिसके बाद गांव की महिलाओं को कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया और मौतें भी होने लगी. यहां तक कि जानवर मरने लगे और बच्चे बीमार होने लगे. सबको यही लगा कि ये देवी का प्रकोप है और परंपरा टूटने के कारण ऐसा हुआ है. फिर क्या था...इसके बाद किसी ने भी इस परंपरा तोड़ने की जुर्रत नहीं की.
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