2027 की तैयारी में जुटी यूपी की सियासत, वाल्मीकि जयंती पर सीएम योगी का बड़ा संदेश

उत्तर प्रदेश की राजनीति अब धीरे-धीरे 2027 के विधानसभा चुनाव की ओर रुख करती दिख रही है। इस दिशा में हाल ही में एक अहम कदम उठाया गया, जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महर्षि वाल्मीकि जयंती पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की। यह फैसला न केवल सांस्कृतिक सम्मान का प्रतीक है, बल्कि वाल्मीकि समाज को सामाजिक समरसता का संदेश देने की एक रणनीतिक पहल भी मानी जा रही है।
इस मौके पर आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में सीएम योगी ने समाज को जाति-पाति से ऊपर उठकर भक्ति और आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जो लोग भगवान की भक्ति करते हैं, वे ही भगवान के सच्चे सेवक हैं, उनकी जाति-पाति कोई मायने नहीं रखती। योगी सरकार राम मंदिर परिसर में बन रहे सप्तर्षि मंदिरों में महर्षि वाल्मीकि का भी मंदिर बना रही है, जिसे व्यापक रूप से प्रचारित करने की बात भी सीएम योगी ने कही।
2022 की रणनीति, 2027 के लिए दोहराने की कोशिश-
सीएम योगी 2022 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह मुफ्त राशन जैसी योजनाओं के जरिए गरीब और दलित वर्ग को साधने में सफल रहे, अब वे उसी तरह की रणनीति 2027 में भी दोहराने की कोशिश कर रहे हैं। इस बार वे केवल कल्याणकारी योजनाओं पर नहीं, बल्कि सांस्कृतिक प्रतीकों और आध्यात्मिक एकता पर भी फोकस कर रहे हैं।
अखिलेश यादव की रणनीति और योगी की जवाबी चाल-
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन सकती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने 'संविधान खतरे में है' जैसे नारों के जरिए दलित समुदाय को जोड़ने की कोशिश की थी, जिसका कुछ असर परिणामों में भी दिखा। लेकिन अब सीएम योगी हिंदुत्व की एकता और धार्मिक समरसता के जरिए जातिगत राजनीति को संतुलित करने की कोशिश कर रहे हैं।
वाल्मीकि जयंती पर सीएम योगी ने साफ संदेश दिया कि भारत की ऋषि परंपरा हमेशा समाज को दिशा देने का कार्य करती रही है। उन्होंने महर्षि वाल्मीकि से लेकर वेदव्यास, संत रविदास और डॉ. भीमराव अंबेडकर तक की परंपरा को एक सूत्र में पिरोते हुए कहा कि यही 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' की अवधारणा है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी 'सबका साथ, सबका विकास' के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं।
रामराज्य की परिकल्पना और समरसता का संदेश-
सीएम योगी ने रामराज्य की अवधारणा को महर्षियों के बताए मार्ग से जोड़ते हुए कहा कि यह वही आदर्श समाज है जिसमें जाति, मजहब या समुदाय के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता। उन्होंने संत रामानंद का उदाहरण देते हुए दोहराया— “जाति-पाति पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।” उन्होंने दावा किया कि बीजेपी की डबल इंजन सरकार इसी विचार को जमीन पर उतार रही है, जहां सभी वर्गों को बिना भेदभाव के योजनाओं का लाभ मिल रहा है। वाल्मीकि समाज की भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि राम मंदिर में बन रहे सप्तर्षि मंदिरों में महर्षि वाल्मीकि का स्थान देना इसी दिशा में एक बड़ा कदम है। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे इस संदेश को घर-घर तक पहुंचाएं।
वाल्मीकि जयंती पर दिया गया सीएम योगी का यह भाषण न केवल धार्मिक-सांस्कृतिक संदर्भों को जोड़ने वाला था, बल्कि आगामी चुनावों की रणनीति का भी संकेत देता है। इस पहल के जरिए वे न केवल दलित समाज को साधने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि अखिलेश यादव की पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) राजनीति को भी सीधे चुनौती दे रहे हैं।
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