जाने कैसे मिला भारत को गौरव गीत - 'वन्दे मातरम'
बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया 'वन्दे मातरम्' गीत केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत के स्वतंत्रता-संग्राम, राष्ट्रीय भावना और मातृभूमि-भक्ति का एक प्रतीक बन चुका है। आज इसे राष्ट्रीय-गीत के रूप में सम्मान मिला है। आज हम आपको बताएँगे ककी क्कैसे इस गौरव गीत कि रचना हुई , क्या महत्व रहा इस गीत का स्वतंत्रता-संग्राम में और जानेंगे कैसे इसे औपचारिक दर्ज़ा प्राप्त हुआ था |
कैसे हुई वन्दे मातरम की रचना
बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने यह लगभग सन 1870 में ये गीत लिखा था | यह गीत बंगाली और संस्कृत यानि दो भाषाओँ कि मिलकर लिखा गया है |इसे उनके उपन्यास 'आनन्दमठ' में शामिल किया गया, जो 1882 में प्रकाशित हुआ था। गीत की रचना के समय चट्टोपाध्याय बंगाल के चिंहासा/हुगली के आसपास रहे थे।
लोकप्रियता और स्वतंत्रता-संग्राम में भूमिका
“वन्दे मातरम्” जल्दी ही देशभक्ति का प्रतीक बन गया। ब्रिटिश काल में इसे सार्वजनिक रूप से गाने पर रोक लगाई गई थी। 1905 के बंगाल विभाजन के विरोधी स्वदेशी आंदोलन में यह गीत एक रैली क्राई (रैली का नारा) बनकर उभरा। देशभक्तों द्वारा सभा-रैली व छात्रों में इसे व्यापक रूप से गाया गया।
औपचारिक दर्जा
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1937 में इस गीत को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किए गए वक्तव्य में यह कहा गया कि “‘वन्दे मातरम्’, जिसने भारत की स्वतंत्रता-संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, को ‘जन-गण-मन’ के साथ समान सम्मान दिया जाए।”
लोक एवं सांस्कृतिक प्रभाव
आज यह गीत विद्यालय-संस्थान, राष्ट्रिय-अवसरों, रक्षा-सेवाओं एवं स्वतंत्रता-दिवस समारोहों में गाया जाता है। हालांकि, इसका प्रयोग कभी-कभी सामाजिक-विवादों के कारण चर्चा में रहा, खासकर धार्मिक और सामाजिक विविधता के संदर्भ में।
“वन्दे मातरम्” सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि वह ध्वज है जिसके पीछे भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की अग्नि, मातृभूमि-प्रेम की तीव्रता और राष्ट्रीय एकता का संकल्प छिपा है। इसके शब्दों में “मातरम्” (माँ) के प्रति समर्पण, “सुजलाम्, सुफलाम्... मातरम्” जैसी पंक्तियों में प्रकृति-मातृभूमि का भाव—सब कुछ एक भावनात्मक एवं सांस्कृतिक बुनावट का हिस्सा हैं। आज भी इसे सुनते-गाते हमारा हृदय देश के लिए धड़कता है।


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