व्यंजन द्वादशी — स्वाद, सेवा और श्रद्धा की सुगंध

भक्ति और स्वाद के पावन संगम के रूप में प्रसिद्ध व्यंजन द्वादशी का पर्व आज श्रीराधारमण जी के मंदिर में विशेष उल्लास के साथ मनाया गया। इस शुभ अवसर पर श्री राधारमण जी के शीतकालीन ‘खिचड़ी भोग’ का आरंभ किया गया, जिसे सर्दी से रक्षा हेतु विशेष रूप से तैयार किया जाता है। सुबह से ही मंदिर में ठाकुरजी के चरणों को ढक कर दिव्य शीतकालीन श्रृंगार सम्पन्न हुआ। इसके पश्चात प्रथम बार गरमागरम खिचड़ी भोग ठाकुर जी को राजभोग में अर्पित किया गया। सर्दी से प्रभु की रक्षा के उद्देश्य से इस खिचड़ी में गरम मसालों, काजू, किशमिश तथा अन्य मेवों का उपयोग किया गया, जिससे यह भोग स्वास्थ्यवर्द्धक एवं ऊर्जा प्रदान करने वाला बनता है। साथ ही, भोग की थाली में अचार, मुरब्बा, पापड़, पालक-मेथी भुजिया, विविध प्रकार के लड्डू और पकौड़े भी अर्पित किए गए। सभी व्यंजन सम्पूर्ण समर्पण और स्नेह की भावना से सजाए गए। मंदिर के गोस्वामियों ने बताया कि शीत ऋतु के उपचार स्वरूप यह विशेष थाली श्रीजी के लिए रखी जाती है, जो गर्माहट देने की परंपरा का प्रतीक है। यह परंपरा दर्शाती है कि ठाकुरजी की सेवा में कोई भी अर्पण साधारण नहीं होता — प्रत्येक अंश प्रेम और श्रद्धा का सूचक है। व्यंजन द्वादशी केवल भोजन अर्पण का पर्व नहीं, बल्कि भक्ति को स्पर्श करने वाली परंपरा है, जहाँ स्वाद सेवा बन जाता है और हर निवाला भक्ति की अनुगूँज। वृन्दावन में शीत की प्रथम गर्माहट सूरज से नहीं, श्री राधारमण जी के राजभोग में परोसी गई खिचड़ी से आरंभ होती है।

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