वक्फ बिल को कूड़ेदान में फेंकेंगे...तेजस्वी का खुला एलान
बिहार की राजनीति फिर गर्मा गई है! इस बार वजह कोई मामूली वोट बैंक मसला नहीं, बल्कि....वक्फ बिल है! सवाल है कि क्या सच में एक बिल विधानसभा चुनाव का खेल पलट सकता है? ये सवाल इसलिए क्योंकि तेजस्वी यादव ने कटिहार से बोला कि अगर सरकार बनी, तो वक्फ बोर्ड बिल को कूड़ेदान में फेंक देंगे! सवाल उठता है कि क्या यह कदम सीमांचल के मुस्लिम वोटों को फिर से एकजुट करने की रणनीति है, या सिर्फ चुनावी शोर है? आइए जानते हैं पूरी कहानी...
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वक्फ बिल पर बयानबाजी ने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कटिहार में जनसभा में कहा कि लालू-राबड़ी की सरकार में RSS और अन्य सांप्रदायिक ताकतों को बिहार में प्रवेश की हिम्मत नहीं थी। उन्होंने नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा को बिहार में जगह देने का काम उन्हीं ने किया। तेजस्वी ने साफ कहा कि भाजपा अगर किसी से डरती है तो लालू जी से डरती है। हमारी सरकार बनी तो वक्फ बोर्ड बिल को कूड़ेदान में फेंक देंगे।
वहीं तेजस्वी यादव के इस बयान के बाद सीमांचल के चुनावी समीकरण में हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस सांसद तारीक अनवर ने भी तेजस्वी के बयान का समर्थन किया और कहा, आरजेडी हो, कांग्रेस हो या महागठबंधन। हम सबने संसद के अंदर और बाहर इस बिल का विरोध किया है। अगर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी तो पूरी ताकत से इस बिल को रोकने की कोशिश की जाएगी। वहीं दूसरी तरफ वाम दलों ने भी समर्थन में बयान जारी किया है। CPI(ML) लिबरेशन के महासचिव दिपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि यह कानून केंद्र द्वारा राज्यों के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने की कोशिश है और संघीय ढांचे के खिलाफ है। दूसरी ओर, भाजपा ने महागठबंधन के नेताओं के बयानों को संविधान विरोधी करार दिया।
आपको बता दें केंद्र सरकार के वक्फ बिल में ऐसे प्रावधान हैं जिनसे मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों का कहना है कि वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ेगा। इसमें वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण, प्रबंधन, विवादों में राज्य सरकार की भूमिका बढ़ाने और सीबीआई जांच जैसी धाराओं का प्रावधान है। विपक्ष का आरोप है कि इससे वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता खत्म हो जाएगी। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि सीमांचल के जिलों कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया और अररिया में मुस्लिम आबादी 40-60% के बीच है। पिछले चुनाव में AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पांच सीटें जीतकर आरजेडी-कांग्रेस के समीकरण को तोड़ दिया था। तेजस्वी का वक्फ बिल पर आक्रामक रुख ओवैसी फैक्टर को कमजोर करने और मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट करने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस और वाम दलों के समर्थन के बाद यह मुद्दा अब INDIA गठबंधन के साझा एजेंडे के रूप में उभर रहा है।
जाहिर है बिहार की राजनीति अब वक्फ बिल के इर्द-गिर्द घूम रही है। सवाल ये है कि क्या यह सिर्फ चुनावी राग है या सच में सीमांचल की राजनीति में ध्रुवीकरण का नया केंद्र बन जाएगा? जवाब तो 2025 के विधानसभा चुनाव में ही मिलेगा। तब तक राजनीति के इस सियासी खेल पर नजर बनाए रखिए।
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