वसीम बरेलवी: उर्दू शायरी के मोती बिखेरता एक दरवेश

उर्दू अदब की जब भी बात होती है, तो कुछ नाम बिना कहे ही ज़ुबां पर आ जाते हैं – उन्हीं नामों में से एक हैं वसीम बरेलवी। इनका असली नाम ज़ाहिद हुसैन है, लेकिन अदबी दुनिया में ये अपने तख़ल्लुस "वसीम बरेलवी" से ही जाने जाते हैं। उत्तर प्रदेश के बरेली में जन्मे वसीम साहब ने अपनी कलम से ऐसी शायरी रची है, जो हर दिल को छू जाती है।
इनकी शायरी सिर्फ़ इश्क़ तक सीमित नहीं, बल्कि समाज, सियासत, इंसानियत और आत्मसम्मान जैसे विषयों पर भी गहराई से प्रकाश डालती है। उनकी ग़ज़लों में गूंजती आवाज़ आम आदमी के जज़्बात की होती है।
वसीम बरेलवी की शायरी की विशेषताएं
सादगी में गहराई: कठिन शब्दों से दूर, वसीम साहब की शायरी आसान लफ़्ज़ों में गहरी बात कहती है।
समाज की आवाज़: वे ज़मीन से जुड़े शायर हैं। उनकी शायरी में आम आदमी की तकलीफ, उम्मीद और जद्दोजहद दिखाई देती है।
अहिंसा और इंसानियत: वसीम साहब की रचनाओं में इंसानियत की वकालत होती है और नफरत की मुखालफ़त।
वसीम बरेलवी की कुछ बेहतरीन शायरी
1.
“हमसे टकराओगे, तो मिट जाओगे
ये हमारी फितरत नहीं, मजबूरी है।”
2.
“तू कहीं भी रहे, तुझपे नजर रखता हूं
तेरे चेहरे को मैं दिल में उतार रखता हूं।”
3.
“हौसला रखो, उजाले फिर लौट आएंगे
अंधेरों का वक़्त बस थोड़ा ही होता है।”
4.
“मैं लोगों से अलग सोचता हूं
इसलिए भीड़ से थोड़ा दूर हूं।”
5.
“लहजे की तल्ख़ी को मुस्कान से पी जाओ,
कभी-कभी ग़ुस्सा भी चुप रहने से हार जाता है।”
उपलब्धियां
वसीम बरेलवी को अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य भी रह चुके हैं।
कई मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने उर्दू को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
वसीम बरेलवी सिर्फ़ एक शायर नहीं, बल्कि एहसासों के वो कारवां हैं जो दिलों से होते हुए ज़हन में उतरते हैं। उनकी शायरी हर उस इंसान के दिल की आवाज़ है, जो दुनिया को बेहतर बनाना चाहता है – प्यार, समझदारी और इंसानियत के रास्ते पर चलकर।
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