करुण कथा जग से क्या कहनी ?

जीवन और कर्म के क्षेत्र में साधारण की असाधारण यात्रा हमेशा ही सबको प्रभावित करती है। एक निहायत सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाले बालकवि बैरागी ने साहित्य और सिनेमा से लेकर राजनीति तक जिस तरह का सघन और सार्थक जीवन जिया, वह अपने आप में एक मिसाल है।एक संवेदनशील कवि के तौर पर ‘अपनी गंध नहीं बेचूंगा’, ‘गन्ने मेरे भाई’ और ‘दीवट पर दीप’ जैसी कविताओं में उनका लोक जीवन और प्रकृति से गहरा प्रेम झलकता है। आजादी के बाद के दौर में जिन लोगों ने हिंदी साहित्य की गरिमा और उसकी जनप्रियता को एक साथ बहाल रखने में बड़ी भूमिका निभाई, उनमें बैरागी जी का नाम सर्वप्रमुख है।आज आप सभी सी न्यूज़ भारत के पाठकों के लिए उन्हीं बालकवि बैरागीकी लेखनी से प्रस्तुत है कविता“झरगये पात”...

झर गए पात / Jhar gaye Paat | Balkavi Bairagi ji | Recited by Shashikant -  YouTube

 

झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

नव कोंपल के आते-आते
टूट गये सब के सब नाते
राम करे इस नव पल्लव को
पड़े नहीं यह पीड़ा सहनी

झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

कहीं रंग है, कहीं राग है
कहीं चंग है, कहीं फ़ाग है
और धूसरित पात नाथ को
टुक-टुक देखे शाख विरहनी
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

पवन पाश में पड़े पात ये
जनम-मरण में रहे साथ ये
"वृन्दावन" की श्लथ बाहों में
समा गई ऋतु की "मृगनयनी"
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

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