वीरों का कैसा हो वसंत?

देश के वीर सपूतों के बारे में लगभग सभी लेखकों और कवियों ने कुछ न कुछ जरूर लिखा है .और देश के वीर सपूतों का गुणगान किया है. किसी ने फूलो के माध्यम से वीर सपूतों के सम्मान में अपनी रचना देशभक्तों को समर्पित की है .तो किसी और तरीके से किन्तु हर एक कवि ने देश भक्तों के लिए कुछ रचनाये लिखकर उनको समर्पित जरूर की है .बसंत का मौसम हर किसी को बहुत ही पसंद होता हैं इस मौसम का इंतज़ार प्रेमी जोड़े तो बहुत ही बेसब्री से करते हैं .ये मौसम सबसे अधिक प्रेमियों के लिए ख़ास माना जाता है .लेकिन देश प्रेमियों के लिए इस बसंत का कोई मतलब ही नहीं होता है .ऐसे ही देश के वीर सपूतों के कुर्बानी और त्याग से रूबरू कराती सुभद्राकुमारी चौहान की ये खूबसूरत रचना .
वीरों का कैसा हो वसंत?
आ रही हिमाचल से पुकार,
है उदधि गरजता बार-बार,
प्राची, पश्चिम, भू, नभ अपार,
सब पूछ रहे हैं दिग्-दिगंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
फूली सरसों ने दिया रंग,
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग,
वीरों का हो कैसा वसंत
वधु-वसुधा पुलकित अंग-अंग,
हैं वीर वेश में किंतु कंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
भर रही कोकिला इधर तान,
मारू बाजे पर उधर गान,
है रंग और रण का विधान,
मिलने आये हैं आदि-अंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
गलबाँहें हों, या हो कृपाण,
चल-चितवन हो, या धनुष-बाण,
हो रस-विलास या दलित-त्राण,
अब यही समस्या है दुरंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
कह दे अतीत अब मौन त्याग,
लंके, तुझमें क्यों लगी आग?
ऐ कुरुक्षेत्र! अब जाग, जाग,
बतला अपने अनुभव अनंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
हल्दी-घाटी के शिला-खंड,
ऐ दुर्ग! सिंह-गढ़ के प्रचंड,
राणा-ताना का कर घमंड,
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
भूषण अथवा कवि चंद नहीं,
बिजली भर दे वह छंद नहीं,
है क़लम बँधी, स्वच्छंद नहीं,
फिर हमें बतावे कौन? हंत!
वीरों का कैसा हो वसंत?
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