जब भगवान ने खुद को शिष्य कहा: दत्तात्रेय और उनके 24 गुरु

BY SHAURYA MISHRA

अब ज़रा सोचिए...

अगर आपसे कोई पूछे – “आपके गुरु कौन हैं?”
तो शायद आप कहेंगे – माता-पिता, आचार्य, संत, कोई प्रेरणास्रोत...

लेकिन अगर भगवान कहे कि

“मेरे गुरु पेड़, नदियाँ, अग्नि, मछली और मकड़ी हैं” —
तो?
पहले तो चौंकेंगे... फिर शायद सोच में पड़ जाएंगे।

लेकिन यही किया भगवान दत्तात्रेय ने।
उन्होंने इस दुनिया को बताया कि गुरु सिर्फ देहधारी नहीं होते, दृष्टिधारी भी होते हैं।
और जब दृष्टि जागती है, तब सारा ब्रह्मांड शिक्षा देता है।

दत्तात्रेय की गुरु-भावना: ज्ञान वहाँ है, जहाँ ग्रहण करने की चाह है

दत्तात्रेय ने 24 ऐसे गुरुओं से शिक्षा ली जो न तो वेद पढ़ाते थे, न प्रवचन देते थे —
वे बोलते भी नहीं थे।
लेकिन उनका होना ही पाठशाला था।

आप भी जानिए उनके 24 गुरु... लेकिन इस बार सिर्फ नाम मत पढ़िए — महसूस कीजिए कि वे आपको क्या सिखा रहे हैं...

दत्तात्रेय के 24 गुरु – जब प्रकृति बन गई शिक्षक

1 पृथ्वी  – "जैसे चाहे रौंदो, वह मुस्कराकर सेवा करती है।"
→ क्या आप उतने सहनशील हैं?

2 वायु – "सबके साथ रहती है, पर किसी में उलझती नहीं।"
→ आप कितनी चीज़ों में आसक्त हैं?

3 आकाश – "सब कुछ समा लेता है, खुद खाली रहता है।"
→ कभी अपने मन को इतना खुला बनाया है?

4 जल  – "हर आकार में ढल जाता है, फिर भी स्वभाव नहीं छोड़ता।"
→ कभी झुककर भी खुद को बनाए रखा है?

5 अग्नि  – "जो भी आए, उसे शुद्ध कर देती है।"
→ क्या तुम्हारे भीतर ऐसा पवित्र तेज है?

6 चंद्रमा  – "रूप घटता है, प्रभाव नहीं।"
→ आप कितनी बार टूटे, और फिर भी शीतल रहे?

7 सूर्य – "नित्य समय पर, बिना थके, सबको उजाला देता है।"
→ क्या आपके कर्म ऐसे निरहंकार हैं?

8 कबूतर  – "मोह के कारण प्राण गंवा बैठा।"
→ आप किन चीज़ों से इतना जुड़ चुके हैं कि वे आपको बाँध रही हैं?

9 अजगर  – "जो मिला, उसी में संतोष।"
→ क्या आप अपनी भूंख के मालिक हैं या गुलाम?

10 समुद्र  – "गहरा है, विशाल है, पर मर्यादा में रहता है।"
→ आपके विचार कितने सीमित या असीम हैं?

11 पतंगा  – "आकर्षण में जल जाता है।"
→ आपके आकर्षण आपको कहाँ ले जा रहे हैं?

12 मधुमक्खी – "इकट्ठा करती रही, और अंत में सब गया।"
→ क्या आप भी संग्रह के पीछे भाग रहे हैं?

13 हाथी – "वासना के जाल में फँस गया।"
→ किस मोह में आप अंधे हो चुके हैं?

14 शहद निकालने वाला – "किसी और का श्रम, किसी और का लाभ।"
→ क्या आपका ज्ञान आपके काम आ रहा है?

15 हिरण  – "मधुर ध्वनि में खो गया।"
→ कभी आपने सोचा, संगीत, मनोरंजन — क्या खींच रहे हैं आपको?

16 मछली – "चारे के लालच में प्राण गँवाए।"
→ आपके लोभ आपके जीवन को कहाँ ले जा रहे हैं?

17 पिंगला वेश्या  – "आशा छोड़ी, शांति पाई।"
→ कभी आपने भी छोड़ने का सुख अनुभव किया है?

18 बालक  – "न चिंता, न छल — बस खेल।"
→ क्या आपकी आत्मा अब भी इतनी निर्दोष है?

19 कन्या  – "संकोच और विवेक से सम्मान बचाया।"
→ आप अपने निर्णय में कितने स्थिर हैं?

20 धातुकार (लोहार)  – "ध्यान इतना गहरा कि बाकी सब मौन हो गया।"
→ क्या आपने ऐसा ध्यान किया है?

21 सर्प  – "एकांत में चलता है, पर खुद को जानता है।"
→ आप अकेले में खुद से मिलते हैं या डरते हैं?

22 मकड़ी – "अपना ही जाल, अपना ही समाधान।"
→ आप कितने जाल खुद के लिए बुन रहे हैं?

23 भृंगी कीड़ा  – "जिस पर ध्यान किया, वही बन गया।"
→ आप किस पर ध्यान कर रहे हैं — और क्या बन रहे हैं?

24 स्वयं का शरीर  – "नश्वर है, टूटेगा ही।"
→ तो क्या आप केवल इसी में उलझे हैं, या आत्मा को भी जानने निकले हैं?

अब गुरु क्या है, इसका उत्तर साफ है:

गुरु कोई एक नाम नहीं, एक संप्रदाय नहीं —
गुरु एक दृष्टि है।
जिससे देखा जाए, तो हर अनुभव में शिक्षा, हर गलती में संकेत और हर क्षण में ज्ञान दिखने लगता है।

गुरु पूर्णिमा का सच्चा अर्थ

इस गुरु पूर्णिमा पर सिर्फ फूल चढ़ाने तक सीमित न रहिए।
दत्तात्रेय की तरह जीने की कोशिश कीजिए।
हर जगह, हर जीव, हर स्थिति से पूछिए —

“ये मुझे क्या सिखा रहा है?”
और यकीन मानिए… उत्तर मिलेगा।

नमन उस दृष्टि को… जो सृष्टि को गुरु बना दे।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुरेव महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।

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