जब सपनों से पहले जिंदगी पूरी होने वाली होती है, तो सिर्फ ख्वाहिशे पूरी करने की ही चाह रह जाती है....

जब एक इंसान अपनी जिंदगी की शाम के दौर से गुजर रहा होता है तो उस इंसान के अंदर सपने को पूरा करने की इच्छा नहीं रह जाती ,वो केवल कुछ ख्वाहिशों को ही पूरा करने का सपना देखने लगता है, उसकी ख्वाहिशें ही उसके सपनों का रूप धारण कर लेती है .क्योंकि उसे पता होता है कि सपना पूरा करने के लिए जिंदगी समय नहीं देने वाली है इस लिए ख्वाहिशों को ही सपना बना लेना उचित रहेगा. ऐसे ही इंसान की मनोदशा को बयां कर रही है मेरी ये दर्द भरी रचना ...

जब जिंदगी सपनों से पहले 
पूरी होने वाली होती है, 
तब सपने नहीं, 
सिर्फ ख्वाहिशे 
पूरी करने की चाह रह जाती है! 
जब जिंदगी पेड़ पर लगे 
उस सूखे पत्ते सी हो जाती है, 
जिसकी जिंदगी तो होती है 
पर जान नहीं होती! 
तब मौत आने से पहले 
जीजिविषा मर जाती है! 
जब जिंदगी गले लगाकर पीठ में 
खंजर घोपने की फिराक में होती है, 
तब लंबी जिंदगी कि नहीं 
सिर्फ क्षणिक आनंद महसूस 
करने की चाह रह जाती है! 
जब दर्द बाहों में बाहें डालकर 
हर वक्त साथ चल रहा हो, 
तब मौत से पहले जिजीविषा मर जाती है! 
जब मंजिल तक पहुंचने से पहले 
जिंदगी अपनी मंजिल को हासिल 
करने का ठान लेती है! 
तब मंजिल की नहीं, 
सिर्फ खूबसूरत सफर में 
खानाबदोश बनने की चाह रह जाती है! 
जब जिंदगी रेत सी 
हाथ से फिसल रही होती है! 
तब लंबी जिंदगी की नहीं, 
सिर्फ बड़ी जिंदगी की चाह रह जाती है! 
पता तो सबको है, 
कि जिंदगी की मंजिल मौत है ! 
फिर भी मौत के नाम से 
आंखें नम हो जाती हैं! 

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