कौन सा दल किसके साथ?...यूपी कि सियासत में हलचल

उत्तर प्रदेश में 2027 विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। सभी दल अपनी-अपनी रणनीतियाँ मजबूत करने में जुट गए हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने यूपी की राजनीति में नई चर्चा छेड़ दी है—कौन सा दल किसके साथ मैदान में उतरेगा, इसकी तस्वीर धीरे-धीरे साफ होने लगी है। सत्ताधारी एनडीए में फिलहाल किसी बड़े बदलाव की संभावना कम दिखाई दे रही है, जबकि विपक्षी इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच खींचतान बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं। उधर, बिहार में अच्छा प्रदर्शन कर एआईएमआईएम ने यूपी में मायावती के साथ संभावित जुड़ाव की तैयारी शुरू कर दी है, जिससे चुनावी समीकरणों में नए बदलाव की संभावना बन रही है।

एनडीए का समीकरण यूं ही रह सकता है मजबूत-

विशेषज्ञों के अनुसार, 2027 के यूपी चुनाव में एनडीए में बड़ा फेरबदल होने की संभावना नहीं है। बिहार चुनाव में भाजपा, जदयू, लोजपा रामविलास, राष्ट्रीय लोक मोर्चा और हम ने मिलकर चुनाव लड़ा और सीटों के तालमेल पर शुरुआती नाराजगी के बावजूद सभी दल 80–90% सीटें जीतने में सफल रहे। यूपी में भी भाजपा अपने पुराने सहयोगी अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के साथ गठबंधन बरकरार रख सकती है। रालोद और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी बिहार के परिणाम देखते हुए भाजपा विरोध को कम कर सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार चुनाव का "साथ या साफ" वाला संदेश यूपी में भी सहयोगियों को एकजुट रख सकता है।

विपक्षी गठबंधन में बढ़ सकती है तकरार-

विपक्षी इंडिया गठबंधन में सबसे अधिक अस्थिरता दिख रही है। लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस यूपी में खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। उपचुनावों में आधी सीटों पर दावा ठोककर कांग्रेस ने संकेत दिया था कि वह यूपी में बड़ी भूमिका चाहती है। लेकिन बिहार में खराब प्रदर्शन ने उसके प्रभाव को कम किया है। दूसरी ओर, गठबंधन के कई दलों में यह भावना उभर रही है कि यूपी में विपक्ष का चेहरा अखिलेश यादव को बनाया जाना चाहिए। बिहार में सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस द्वारा आखिरी समय तक स्थिति स्पष्ट न करने से गठबंधन को नुकसान उठाना पड़ा, और ऐसी स्थिति से बचने की तैयारी सपा यूपी में कर सकती है।

तीसरे मोर्चे की चर्चाऐं गर्म-

यूपी में तीसरे मोर्चे की संभावनाएँ भी बढ़ रही हैं। बिहार में पाँच सीटें जीतकर एआईएमआईएम ने मुस्लिम मतदाताओं पर अपनी पकड़ मजबूत की है और अब वह यूपी में बसपा प्रमुख मायावती के साथ गठबंधन की दिशा में कदम बढ़ाते दिखाई दे रही है। यदि मायावती एक मजबूत मुस्लिम चेहरे के साथ चुनाव लड़ती हैं तो उनका "दलित–मुस्लिम" फार्मूला फिर गति पकड़ सकता है, जो सपा की पीडीए रणनीति के लिए चुनौती बन सकता है।

कुल मिलाकर, यूपी की राजनीति 2027 चुनाव से पहले तेजी से करवट ले रही है, जहाँ एनडीए की एकजुटता, विपक्षी गठबंधन की चुनौतियाँ और तीसरे मोर्चे की संभावनाएँ चुनावी तस्वीर को और रोचक बनाती जा रही हैं।

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