जिंदगी की शाम में क्यों अकेला पड़ जाता है वो इंसान जो परिवार रुपी बगीचे को लगता है

दुनियां में सिर्फ कुछ ही रिश्ते ऐसे होते है जिनमे कोई स्वार्थ नही हो होता है , जो पूर्णत: निस्वार्थ भावों से भरा होता है , और वो होता है माँ और बाप का का प्यार जिसमे स्वार्थ की बिल्कुल भी गुंजाइश नहीं होती है, लेकिन अक्सर हम ऐसे ही रिश्तों को नज़रअंदाज कर देते है .और खासकर  तब जब इन रिश्तों को सबसे अधिक हमारी जरूरत होती है.जब हमारे प्यरा और स्नेह और साथ  की जरूरत होती है तब हम इन्हें बोझ समझना शुरू कर देते है, जो हाथ हमारी उँगलियों को पकड़ कर चलना सिखाते है उन्ही पर हम ऊँगली उठाने लगते है ,किन्तु इअसी दशा  में भी एक बाप अपने बच्चे की खुशियों के लिए ही फरियाद करता है .एक पिता की बढ़ती उम्र के साथ मन में हो रही उथल पुथल और मनोदशा को बयां कर रही है ये रचना .हम उम्मीद करते है कि आपको हमारी ये कोशिश जरूर पसंद आएगी ...

 

कहने को उसका पूरा परिवार है,
फिर भी उसकी जिन्दगी विरान है!
परिवार रूपी बगीचे को लगाने वाला माली,
उसी बगीचे की छांव के लिए मोहताज है!
जिन पौधों को प्रेम और स्नेह 
से सीच कर हरा भरा किया था,
उन्हीं के बीच खुद आज बैठा उदास है!
झुर्रीदार चेहरे में बैचेनिया छुपी हजार है,
पर इस बैचेनियो का किसी को नही एहसास है!
जिन्दगी की इस शाम में अकेला वो आज है!
जिससे परिवार रूपी बगीचे में आया बसन्त है
उसी की जिन्दगी में पतझड़ लगा आज है!
जिन हाथो ने छोटी छोटी उंगलियों को 
पकड़ कर चलना सिखाया था,
        उन्हीं उंगलियों को खुद पर उठता देख हैरान है!          
होली के रंग तो उसके चेहरे पर लगे है, 
पर जिन्दगी में फीके खुशियों के रंग है!
पास होकर भी कोई नही उसके साथ है!
जो कंधे बच्चों को पूरे मेले की सैर कराया करते थे,
उन्हीं की जिन्दगी एक काठ की छड़ी पर टिकी आज है!
जिन्दगी के इस सफर में आकेला वो आज है,
बच्चों की तरह वो खुद से करता रहता संवाद है!
फिर भी अपने बच्चों की 
खुशियों के लिए हर पल करता फरियाद है!
आखिर वो इक बाप है! 

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