क्यों हमारे सपने डायरी के पन्नों में ही सिमट कर रह जाते हैं

एक तरफ तो हमारे देश की माहिलाएं हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही है और अपना लोहा मनवाने का काम कर रही है .तो , वहीं दूसरी तरफ आज भी 21वीं सदी में बहुत सी महिलाएं चौखट से बहार निकले के लिए संघर्ष कर रही है .उन्हें अपनी जिंदगी के लिए निर्णय लेने का भी आधिकार नहीं है . उन्ही महिलोओं की दांस्ता बताती हुई  मेरी ये कुछ पंक्तियाँ,उम्मीद करती हूँ की आपको पसंद आयेगी ....


क्यों हमारे सपने डायरी के पन्नों में 
ही सिमट कर रह जाते हैं ?
क्यों बाहर निकलने से घबराते हैं ?
यदि डायरी से बाहर आ भी जाते हैं 
तो एक ऊंची उड़ान भरने से पहले 
क्यों उनके पंख तोड़ दिए जाते हैं ?
सपनों की दुनिया 
क्यों एक डायरी में ही 
सिमट कर रह जाते हैं? 
क्यों हमारी ख्वाहिशों का 
खुली हवा में एक लंबी सांस भरने से 
पहले गला घोट दिया जाता है? 
हमारी आंखों में सुनहरे सपने 
पलने से पहले ही 
क्यों खौफनाक मंजर भर दिए जाता है ? 
क्यों हमें अपने सपने को 
सिर्फ डायरी तक ही सीमित 
रखने का अधिकार है ? 
क्यों हमारे विचारों को चारदीवारी में 
कैद करने का हर संभव प्रयास किया जाता है? 
क्यों हमारे अपनों द्वारा हमेशा 
यह नसीहत दी जाती है , 
कि घर के बाहर के मामले में 
दखल करना लड़कियों के संस्कार नहीं ? 
क्यों हमेशा हमें संस्कारी बनाने के 
नाम पर बेचारी बनाया जाता है? 
क्यों हमेशा हमें  सिर्फ सहना 
सिखाया जाता है? 
कुछ तो कर रहीं अंतरिक्ष में नाम दर्ज, 
तो कुछ निभा रहीं देश भक्ति का फर्ज! 
पर कुछ अभी कर रही चौखट के 
बाहर निकलने का ही संघर्ष! 
क्यों कुछ को चौखट के 
बाहर जाने का भी अधिकार नहीं? 
क्यों पुत्र मोह में अंधी मां द्वारा
नन्ही-सी कली खिलने से 
पहले ही तोड़ दी जाती है? 
क्यों कुछ इस दुनिया में 
आने के खातिर कर रहीं हैं संघर्ष? 

मनीषा गोस्वामी 

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