बर्न आउट सिंड्रोम के गर्त में धंसता भारत -

PRAKHAR SHUKLA

क्या आपने कभी कॉर्पोरेट सेक्टर में काम किया है , या आपके घर में कोई काम करता है, क्या आप कभी उनके निजी और व्यावसायिक जीवन के बीच समन्वय स्थापित्व को लेकर बात किए हैं ? यदि नहीं तो बैठिये उनके पास और उनके नित्य जीवन के बारे में जानने की कोशिश कीजिये, इससे आप भी जागरूक और सजग होंगे | आपको पता चलेगा की 10-6 ऑफिस के घंटो के बाद वो ऑफिस से घर आते हैं तो ऑफिस को साथ लेकर आते हैं  | उनके लैपटॉप्स ऑन और फोन के नोटिफिकेशन पर पैनी नजर बनी ही रहती है ,फिर चाहे घर में कोई खुशियों को मनाने का मौका हो , बच्चे और पत्नी आपका समय मांग रहे हो ,दोस्त आपका चाय की टपरी पे इंतजार कर रहे हों, या कितना ही निजी कार्य क्यों न हो, वे इन सब से बराबर तालमेल न बैठा पाने की समस्या से जूझने लगते हैं| परिणामस्वरूप मानसिक अवसाद , रिश्तों में दूरी , स्वयं से आत्मसंतोष की कमी , व्यवहार में स्थायी चिड़चिड़ापन , हिंसात्मक प्रवृत्ति और शारीरिक स्वास्थ्य की क्षति होने लगती है  | जॉब मिलने के बाद जिस जीवन की कल्पना करते हैं उसका बहुत निम्न प्रतिशत ही जी पा रहे होते हैं |

 
क्या आप भीमेश बाबू को जानते हैं जिनकी मौत उनके कनिष्ठ सहयोगी के वर्क लाइफ बैलेंस न करने के कारण हुई ?

मामला 2 नवंबर 2025 को बैंगलोर के कॉर्पोरेट सेक्टर का है ,भीमेश बाबू नित्य की तरह काम कर रहे थे तकरीबन रात के 2 बजे थे , उन्हें हल्की रौशनी में काम करने की आदत थी , वे अपने सहयोगी से लाइट बंद करने को बोलते हैं , उनका सहयोगी ओवरटाइम से झुंझलाया हुआ था और उसने भीमेश बाबू पर  प्रहार कर दिया, प्रहार इतना जोरदार था की वह उनकी जान ले गया | इन जैसे हिंसात्मक कृत्य के आसपास मेल खाती है बर्न आउट सिंड्रोम की परिभाषा | काम के अत्यधिक दबाव में आकर ,व्यक्ति हिंसात्मक वृत्ति,अवसाद इत्यादि के चपेट में आ जाता है,और सामान्य से जीवन को जटिलता की बेड़ियों में बाँध देता है |

अच्छा, क्या आप अन्ना सेबेस्टियन पेरिल के बारे में जानते हैं ?   

 25 वर्षीय अन्ना अपने पहले व्यावसायिक जीवन में प्रवेश को लेकर उत्सुक थी , मगर जॉब ज्वाइन करने के ठीक 14 महीने बाद उनकी मौत हृदयाघात के कारण हो गई। वजह थी मानसिक उत्पीड़न और ओवरटाइम | उनकी माँ ने कंपनी के ऊपर केस भी किया था | एक शोध के मुताबिक भारत इस मामले में शीर्ष देशों को पीछे छोड़ चुका है | यहाँ लगभग 60% से अधिक कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारी सचेतन , अवचेतन इस सिंड्रोम के शिकार हैं | वहीँ 8-10 घंटे काम करने वाले लोगों की उत्पादकता महज 2-3 घंटे तक ही रहती है ,इसके बाद वो अनैक्षिक रूप से काम करते पाए जाते हैं | अन्य देश फ्रांस ,यूएस, जापान चीन , इत्यादि की तुलना में भारत में श्रम का सम्मान नगण्य है| यहाँ वेतन के मुकाबले काम अधिक लेने की रीति है | भारत 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य लिया है ,वहीँ 2050 तक भारत में बर्न आउट सिंड्रोम के शिकार की संख्या कई भी गुना बढ़ जाएगी यानी दोनों चीज़ें साथ साथ चल रही हैं |   

कड़ी निगरानी के बीच करना होता है काम -

ऑफिस में बायोमेट्रिक सिस्टम अनिवार्य कर दिया गया है , सीसीटीवी कैमरा से मॉनिटरिंग होती है , जीपीएस से लोकेशन ट्रैक किये जाते हैं ,और स्क्रीन पे लॉगिन रहने के समय को बराबर देखा जाता है | काम में त्रुटि पाए जाने पर भरसक शाब्दिक प्रताड़ना और सैलरी में कटौती का सामना करना पड़ता है | फ्रांस में कोई भी कंपनी के लिए ये नियम है की वे शाम 7 बजे से लेकर सुबह 8 बजे तक किसी भी कर्मचारी को आधिकारिक ईमेल या मैसेज नहीं भेज सकते | कई देश लॉगिन और डेस्क टाइम को लेकर निश्चित समय सीमा निर्धारण पे कार्य कर रहे हैं | क्यूंकि उनके लिए उत्पाकता के मायने कहीं अधिक महत्वपूर्ण है | 


कार्यकारी वर्ग के लोगों से निर्धारित घंटो से अधिक काम लेने का प्रावधान  - 

चाहे वो श्रमिक हो ,दिहाड़ी मजदूर हों , किसी कंपनी के एम्प्लोयी हो या अधिकारी समूह या कोई भी वर्ग हफ्ते में 48 घंटे से अधिक कार्य न करने का प्रावधान है | भारत में इससे कहीं अधिक काम लिया जाता है | 10 मार्च 2025 के आसपास कर्नाटक में आईटी सेक्टर के बड़े समूह ने इनफ़ोसिस के को-फाउंडर और एल एन्ड टी के चेयरपर्सन के एन.एन सुब्रह्मण्यम के खिलाफ हफ्ते में 90 घंटे काम करवाने को लेकर प्रदर्शन किया था जिसपर कंपनी ने करवाई भी किया |

देश में उत्पादकता और कार्य के बीच खाई न पैदा होने देना , और एक सुनिश्चित नियम को सख्ती से लागू करने से इस गंभीर समस्या से निजात पायी जा सकता है | देश की आर्थिक प्रगति , प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य की दुरुस्तता को रीढ़ बनाकर ही आगे बढ़ा जा सकता है | 

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.