अंंतराष्ट्रीय विकलांगता दिवस , विकलांगता एक ताकत न कि कमजोरी-
BY- PRAKHAR SHUKLA
“विकलांगता: 6 में से 1 जीवन की वास्तविकता और समान स्वास्थ्य अधिकार की यात्रा”
विकलांगता: इंसानी जीवन का हिस्सा, न कि सीमा-
विकलांगता कोई अलग दुनिया नहीं है, बल्कि हमारे बीच रहने वाली वास्तविकता है। आज दुनिया में 1.3 अरब लोग, यानी हर 6 में से 1 व्यक्ति, किसी न किसी रूप में गंभीर विकलांगता के साथ जीवन जी रहा है। यह संख्या बढ़ रही है—क्योंकि लोग अब कम उम्र तक जी रहे हैं और गैर-संचारी रोगों का फैलाव भी बढ़ रहा है। विकलांगता केवल किसी एक बीमारी का नाम नहीं, बल्कि व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थितियों और उसके आस-पास के सामाजिक माहौल के बीच होने वाली जटिल परस्पर क्रियाओं का परिणाम है।
दुनिया को विकलांगों की हालत ,समझना होगा-
दुर्भाग्य से, यह दुनिया अभी तक उन लोगों के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है जिनके जीवन में शारीरिक, मानसिक या बौद्धिक चुनौतियाँ हैं। दुर्गम इमारतें, कठिन परिवहन, सीमित सामाजिक समर्थन और नकारात्मक दृष्टिकोण—ये सभी मिलकर उस बाधा को और गहरा बना देते हैं जिसे विकलांग लोग रोज़ महसूस करते हैं।
जब वातावरण ही बाधा बन जाए-
किसी व्यक्ति के लिए विकलांगता का अनुभव केवल उसकी स्थिति पर निर्भर नहीं करता, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करता है कि उसका वातावरण उसे कितना समर्थन देता है। जब परिवेश बाधा नहीं बल्कि सहयोगी बनता है—तो वही व्यक्ति अपने जीवन में अधिक स्वतंत्रता और सम्मान से आगे बढ़ सकता है।आज भी कई देशों में, विकलांग लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और रोजगार तक पहुँचने के लिए दूसरों की तुलना में कई गुना अधिक संघर्ष करना पड़ता है।
डब्लूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक आँकड़े बताते हैं कि कुछ विकलांग व्यक्ति-
20 साल पहले तक मृत्यु का जोखिम झेलते हैं,अवसाद, मधुमेह, स्ट्रोक जैसी बीमारियों का दोगुना जोखिम उठाते हैं,स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँचने में 6 गुना अधिक बाधाओं का सामना करते हैं,और परिवहन की कठिनाइयों से 15 गुना अधिक प्रभावित होते हैं।ये असमानताएँ स्वास्थ्य व्यवस्था की कमी नहीं, बल्कि सामाजिक ढांचे की असमानताओं को दर्शाती हैं।
डब्लूएचओ द्वारा विकलांगों के लिए उठाए गए कदम कितने उपयोगी-
टेलीहेल्थ सेवाओं की दिशा में उठाए गए कदम-
स्वास्थ्य को घर तक पहुँचाने वाला साधन – पर क्या सबके लिए? कोविड-19 महामारी के बाद टेलीहेल्थ सेवाओं ने स्वास्थ्य सेवाओं की दुनिया बदल दी। लेकिन सवाल महत्वपूर्ण है—क्या ये बदलाव विकलांग लोगों के लिए भी समान रूप से उपयोगी हैं?
जो डिजिटल प्लेटफार्म का नहीं कर पाते उपयोग , उनका क्या?
कई दिव्यांगजन अभी भी टेलीहेल्थ प्लेटफॉर्म का उपयोग नहीं कर पाते क्योंकि वे उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर डिज़ाइन ही नहीं किए गए। इसी चुनौती को देखते हुए WHO और ITU ने वैश्विक स्तर पर टेलीहेल्थ को सुलभ बनाने के लिए मानक और टूलकिट विकसित किए हैं। यह न सिर्फ दिव्यांगजनों बल्कि बुजुर्गों, कम डिजिटल साक्षरता वाले लोगों, प्रवासियों और शरणार्थियों के लिए भी एक बड़ा सहारा साबित होगा।
स्वास्थ्य समानता अधिकार है न कि दान, पहुँचा रहा तमाम देशों को मदद-
स्वास्थ्य का अधिकार सभी के लिए समान होना चाहिए—और यही बात विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) स्पष्ट रूप से कहता है। WHO देशों को सहायता दे रहा है कि वे स्वास्थ्य व्यवस्था में विकलांगता समावेशन को शामिल करें। इसके लिए WHO ने “स्वास्थ्य समानता: कार्रवाई हेतु मार्गदर्शिका” बनाई है, जिसमें यह स्पष्ट बताया गया है कि किस तरह सरकारें विकलांग व्यक्तियों को ध्यान में रखकर अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों को बेहतर बना सकती हैं।इसके अलावा, WHO की सर्वेक्षण प्रणालियाँ और डेटा उपकरण यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि विकलांगता से जुड़े आँकड़े सटीक और विश्वसनीय हों—ताकि नीतियाँ वास्तविक जरूरतों के आधार पर बनाई जा सकें।
एक ऐसी दुनिया की ओर कदम, जहाँ कोई पीछे न छूटे-
अगर हम वातावरण से बाधाएँ हटाएँ, डिजिटल समाधानों को सुलभ बनाएं, और नीतियों में विकलांग व्यक्तियों की वास्तविक जरूरतों को शामिल करें—तो हम सिर्फ विकलांग लोगों का जीवन बेहतर नहीं कर रहे होंगे; हम एक ज्यादा मानवीय, समान और न्यायपूर्ण दुनिया की ओर बढ़ रहे होंगे।
विकलांगता इंसानी जीवन का हिस्सा है—और इसलिए, समाधान भी इंसानियत से ही निकलने चाहिए।

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