युवाओं की अपेक्षाओं की सरकारें क्यों कर रहीं उपेक्षा ?

नेपाल में जो हुआ वो ठीक उसी तरह से है जो श्रीलंका में हुआ था और जो बांग्लादेश में देखा गया था | हुक्मरानों को देश छोड़ कर जाना पडा | 
भारत में युवा आबादी की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है, और यह देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक धारा को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। हालांकि, यह युवा शक्ति अपनी आकांक्षाओं, आवश्यकताओं और समस्याओं के संदर्भ में सरकारों से अपेक्षित समर्थन और ध्यान नहीं प्राप्त कर पा रही है। यह स्थिति न केवल युवाओं के लिए, बल्कि राष्ट्र के समग्र विकास के लिए भी चिंता का विषय है।
भारत में शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता और पहुंच में भारी असमानताएँ हैं। ग्रामीण क्षेत्रों और पिछड़े इलाकों में शिक्षा संस्थानों की कमी, अवसंरचनात्मक समस्याएँ और योग्य शिक्षकों की कमी के कारण लाखों युवा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे रोजगार बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं हो पाते। हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार ने कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं को रोजगार और स्वरोजगार से जोड़ने की पहल की है, लेकिन इन पहलों की प्रभावशीलता और पहुंच पर सवाल उठते हैं।

युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों की कमी एक गंभीर समस्या है। युवाओं (15-29 आयु वर्ग) में बेरोज़गारी की दर सामान्य आबादी की तुलना में अधिक है। वर्ष 2022 में शहरी युवाओं के लिए बेरोज़गारी दर 17.2% थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 10.6% थी। युवा महिलाओं के लिए यह स्थिति विशेष रूप से गंभीर है, जिनके बीच बेरोज़गारी दर 21.6% पाई जाती है।

युवाओं के मुद्दों को राजनीतिक एजेंडे में प्राथमिकता नहीं दी जाती। युवाओं की आवाज़ को अक्सर अनसुना कर दिया जाता है, और उनके मुद्दों पर ठोस नीतियाँ और योजनाएँ लागू नहीं की जातीं। यह स्थिति युवाओं में असंतोष और निराशा को बढ़ावा देती है।

युवाओं की अपेक्षाओं की उपेक्षा केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित नहीं करती, बल्कि यह राष्ट्र की समग्र प्रगति और विकास में भी बाधा उत्पन्न करती है। सरकारों को चाहिए कि वे युवाओं की शिक्षा, रोजगार, मानसिक स्वास्थ्य, और सामाजिक सक्रियता जैसे मुद्दों पर ठोस नीतियाँ बनाएं और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करें। युवाओं को सशक्त बनाना और उनकी अपेक्षाओं को पूरा करना राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है।

 

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