माँ दुर्गा की विदाई में महिलाओं ने निभाई बंगाल की पारंपरिक 'सिंदूर खेला' की रस्म : देखें तस्वीरे

बंगाली समुदाय में सिंदूर होली खेलने का प्रचलन है जिसे एक उत्सव के रूप में मनाते है. गया के बंगाली समाज की महिलाएं की ओर से मां दुर्गा को सिंदूर लगाकर और खोईंचा देकर विदा की.गया शहर के दुर्गाबाड़ी रोड स्थित दुर्गाबाड़ी में दशमी के दिन महिलाओं की ओर से सिंदूर की होली खेली गई. ऐसी मान्यता है कि शारदीय नवरात्र के विजयादशमी के दिन जब मां दुर्गा वापस जाती है तो उनकी विदाई के सम्मान में सिंदूर की होली खेलने की परंपरा है.
बंगाली समुदाय में सिंदूर होली खेलने का प्रचलन है जिसे एक उत्सव के रूप में मनाते है. गया के बंगाली समाज की महिलाएं की ओर से मां दुर्गा को सिंदूर लगाकर और खोईंचा देकर विदा की.गया शहर के दुर्गाबाड़ी रोड स्थित दुर्गाबाड़ी में दशमी के दिन महिलाओं की ओर से सिंदूर की होली खेली गई. ऐसी मान्यता है कि शारदीय नवरात्र के विजयादशमी के दिन जब मां दुर्गा वापस जाती है तो उनकी विदाई के सम्मान में सिंदूर की होली खेलने की परंपरा है.
बंगाली समुदाय में सिंदूर होली खेलने का प्रचलन है जिसे एक उत्सव के रूप में मनाते हुए मां दुर्गा की प्रतिमा को विदाई देते है. इस दौरान गया शहर के अलग-अलग मोहल्ले से बंगाली समाज की बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हुईं. सबसे पहले महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर लगाती हैं. उसके बाद सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर जश्न मनाती है.
बंगाली समुदाय में सिंदूर होली खेलने का प्रचलन है जिसे एक उत्सव के रूप में मनाते हुए मां दुर्गा की प्रतिमा को विदाई देते है. इस दौरान गया शहर के अलग-अलग मोहल्ले से बंगाली समाज की बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हुईं. सबसे पहले महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर लगाती हैं. उसके बाद सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर जश्न मनाती है.
यह परंपरा 500 साल से अधिक पुरानी है. मान्यता है कि मां दुर्गा 10 दिन के लिए अपने मायके आती है जिसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है और जब वह वापस जाती है तो विदाई में उनके सम्मान में सिंदूर की होली खेलकर रस्म पूरी की जाती है. महिलाएं सुखी जीवन और परिवार की खुशहाली के लिए मां दुर्गा के चरण को स्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं. महिलाएं इसे सौभाग्य का प्रतीक मानती है कि सिंदूर होली खेलने से पति की आयु बढ़ती है.
यह परंपरा 500 साल से अधिक पुरानी है. मान्यता है कि मां दुर्गा 10 दिन के लिए अपने मायके आती है जिसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है और जब वह वापस जाती है तो विदाई में उनके सम्मान में सिंदूर की होली खेलकर रस्म पूरी की जाती है. महिलाएं सुखी जीवन और परिवार की खुशहाली के लिए मां दुर्गा के चरण को स्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं. महिलाएं इसे सौभाग्य का प्रतीक मानती है कि सिंदूर होली खेलने से पति की आयु बढ़ती है.
दुर्गाबाड़ी समिति के सचिव विश्वजीत चौधरी बताते हैं कि गया के दुर्गाबाड़ी में सन् 1932 से बंगाली समाज की ओर से मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जा रही है. विश्वजीत चौधरी बताते हैं कि षष्ठी के दिन से मां दुर्गा की पूजा अर्चना और आरती कर आज विजयादशमी के दिन मां की विदाई दी जा रही है. बंगाली समाज की महिलाओं की ओर से मां दुर्गा को सिंदूर लगाकर और पान के पत्ते से गाल सेक कर आर्शीवाद लिया. विजयादशमी के दिन गया के रुक्मिणी तालाब में मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा.
दुर्गाबाड़ी समिति के सचिव विश्वजीत चौधरी बताते हैं कि गया के दुर्गाबाड़ी में सन् 1932 से बंगाली समाज की ओर से मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जा रही है. विश्वजीत चौधरी बताते हैं कि षष्ठी के दिन से मां दुर्गा की पूजा अर्चना और आरती कर आज विजयादशमी के दिन मां की विदाई दी जा रही है. बंगाली समाज की महिलाओं की ओर से मां दुर्गा को सिंदूर लगाकर और पान के पत्ते से गाल सेक कर आर्शीवाद लिया. विजयादशमी के दिन गया के रुक्मिणी तालाब में मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा.

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