चार पीढ़ियों से माटी के दिए बना रहे कारीगर पुश्तैनी काम छोड़ने को मजबूर
चार पीढ़ियों से माटी के दिए बना रहे लखनऊ के मोहम्मद नादिर,
इस बार अयोध्या से नहीं मिला आर्डर,
आमदनी का संकट, घाटे से छुटकारा पाने को बना रहे 50 हजार माटी के दिए,
लखनऊ के चिनहट में रहने वाले मोहम्मद नादिर का परिवार चार पीढ़ियों से माटी के दिए बना रहा है, लेकिन इस दीपावली उनको अयोध्या से ऑर्डर नहीं मिला, इससे आमदनी का संकट खड़ा हो गया, परिवार मायूस है, पहले अयोध्या दीपोत्सव के लिए दिए बनाकर वे अच्छी आमदनी कर लेते थे, अब आमदनी बढ़ने के लिए उनका परिवार रोजाना 50 हजार माटी के दिए तैयार करता है,
माटी का मिलना बड़ी चुनौती....
माटी के दिए बनाने के लिए सबसे अहम सामग्री चिकनी माटी बड़ी मुश्किल से मिलाती है, नादिर बताते है, कि पहले लखनऊ के तालाबों से माटी मिल जाती थी, लेकिन अब सूखे तालाबों और निर्माण के कारण उन्हें बाहरी जिलों से महंगी माटी खरीदनी पड़ती है, ये माटी की सफाई, गुन्धाई और भट्ठी में पकाने की प्रक्रिया में परिवार 16 से 18 घंटे लगातार मेहनत करता है,
मेहनत ज्यादा, मुनाफा कम....
माटी के दिए बनाना नादिर और उनके परिवार के लिए व्यवसाय से बढ़कर एक पुश्तैनी पहचान है, लेकिन इसमें मुनाफा कम होता है,
थोक में माटी के दिए बेचने के कारण वे अपनी मेहनत के अनुसार लाभ नहीं कमा पाते, इसके बावजूद परिवार दीपावली के लिए छोटे, बड़े और डिज़ाईनर दीयों को बनाने में पूरा समय दे रहा है,
सरकारी सहायता की मांग....
मोहम्मद नादिर और अन्य कुम्हार चाहते है, कि सरकार माटी, कंडे और अन्य जरूरी सामग्रियों की उपलब्धता में सहायता करे, वे कहते है, कि यदि कुम्हारों को सस्ते दाम पर माटी मिले और दियों की बिक्री के लिए शहर में जगह दी जाए, तो न केवल उनकी आय में वृद्धि होगी, बल्कि माटी के दियों की कला को भी बचाया जा सकेगा,
पुश्तैनी काम छोड़ने की मजबूरी....
माटी के दिए बनाने वाले युवा कारीगर बताते है, कि युवा अब इस पेशे में रूचि नहीं ले रहे है, और वैकल्पिक रोजगार की तलाश में है, माटी के दिए बनाने में बहुत समय और मेहनत लगती है, और बिना किसी सरकारी मदद के यह पुश्तैनी काम भविष्य में समाप्त हो सकता है !
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