वो जगह जहां , पिंडदान करने से 16 पीढ़ियों की आत्मा को मिलती है शांति
सनातन धर्म में पिंडदान की प्रथा आज से नहीं बल्कि सतयुग से चली आ रही है. मान्यता है कि लंका विजय करने के बाद भगवान श्री राम जब माता सीता और लक्ष्मण के साथ लौटे थे तो उन्होंने पहला पिंडदान अपने पिता राजा दशरथ का प्रयागराज में किया था. उसी के बाद से हिंदू धर्म में पिंडदान की प्रथा की शुरुआत हुई. कहा जाता है कि पहला पिंडदान प्रयागराज में किया जाता है दूसरा काशी में और तीसरा गया धाम में. प्रयागराज को भगवान विष्णु का मुख कहा गया है और काशी भगवान विष्णु का पेट है तो वहीं गया धाम भगवान विष्णु के चरण है अंतिम पिंडदान वहां करने के बाद मृतकों की आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है.वहीं पहला पिंडदान प्रयागराज में क्यों किया जाता है , और क्या करना चाहिए चलिए आपको बताते हैं -
No Previous Comments found.