IVF: भ्रांतियों के पार मातृत्व की नई उम्मीद

समाज में आज भी इनविट्रो फर्टिलाइजेशन यानी आईवीएफ (IVF) को लेकर कई तरह की भ्रांतियां और गलतफहमियां फैली हुई हैं। बहुत से लोग इसे “कृत्रिम गर्भ” या “अप्राकृतिक तरीका” मानते हैं, जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। आईवीएफ उन दंपत्तियों के लिए एक वैज्ञानिक वरदान है जो संतान सुख से वंचित रह जाते हैं। इस विषय पर सी न्यूज भारत ने विस्तार से DIVA आईवीएफ लखनऊ की डायरेक्टर और प्रसिद्ध गाइनकोलॉजिस्ट डॉ. वैशाली जैन से बातचीत की .. 

जानें कैसे आईवीएफ से जन्मे बच्चों का स्वास्थ्य नहीं है अन्य बच्चों से  अलग-Health of children born with IVF is not different from other children -  India TV Hindi

क्यों माना जाता है कि आईवीएफ से बच्चे कृत्रिम रूप से जन्म लेते हैं?

डॉ. वैशाली जैन, जो DIVA आईवीएफ लखनऊ का नेतृत्व कर रही हैं, उन्होंने बताया कि., आईवीएफ को असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्निक कहा जाता है। इसमें बस इतना होता है कि अंडाणु और शुक्राणु को महिला के शरीर से बाहर मिलाया जाता है और निषेचन के बाद भ्रूण (Embryo) को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया प्राकृतिक ही होती है, बस इसमें थोड़ी “सहायता” दी जाती है, इसलिए इसे कृत्रिम नहीं कहा जा सकता।

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क्या आईवीएफ से जन्मे बच्चे सामान्य बच्चों से अलग होते हैं?

डॉ. वैशाली जैन ने साफ किया कि ऐसा बिलकुल नहीं है ,  सभी वैज्ञानिक अध्ययनों में यह पाया गया है कि आईवीएफ से जन्मे 95% बच्चे पूरी तरह सामान्य होते हैं। जैसा कि सामान्य गर्भधारण में 4–5% बच्चों में कोई जटिलता हो सकती है, वैसे ही आईवीएफ में भी वही प्रतिशत रहता है।

आईवीएफ हमेशा आखिरी विकल्प होता है या शुरुआत में भी अपनाया जा सकता है?

इस विषय पर DIVA आईवीएफ लखनऊ की प्रमुख विशेषज्ञ डॉ. वैशाली जैन का कहना है कि, यह स्थिति पर निर्भर करता है। यदि महिला की दोनों ट्यूबें ब्लॉक्ड हैं, या पति के स्पर्म बहुत कमजोर हैं, या महिला की उम्र अधिक हो गई है तो आईवीएफ को पहला विकल्प माना जाता है। जबकि जिन महिलाओं ने पहले अन्य सभी उपचार कर लिए हैं और फिर भी गर्भधारण नहीं हो पा रहा, उनके लिए यह अंतिम विकल्प बन जाता है।

आईवीएफ की सफलता दर कितनी होती है?
लखनऊ की अग्रणी फर्टिलिटी एक्सपर्ट डॉ. वैशाली जैन, कहती हैं कि,सफलता दर महिला की उम्र पर निर्भर करती है।जैसे -

35 वर्ष से कम आयु में सफलता दर 50–70% होती है।
35 से 40 वर्ष के बीच 30–50%।
40 वर्ष से ऊपर यह घटकर 10–15% रह जाती है।

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क्या आईवीएफ सिर्फ अमीरों के लिए ही संभव है?

डॉ. वैशाली जैन बताती हैं कि, बिलकुल नहीं। आज भारत में आईवीएफ काफी सुलभ हो गया है। औसतन 1 लाख से 2.5 लाख रुपये के बीच में यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है। कुछ सरकारी अस्पतालों और बीमा योजनाओं में अब इस पर सब्सिडी भी उपलब्ध है।

क्या आईवीएफ से मां की सेहत पर कोई बुरा असर पड़ता है?

डॉ. वैशाली जैन ने इस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आईवीएफ में इस्तेमाल होने वाली दवाइयां या इंजेक्शन सिर्फ 10–15 दिनों तक दिए जाते हैं। ये अस्थायी (temporary) उपचार हैं जिनसे शरीर पर कोई स्थायी नुकसान नहीं होता। हल्की असुविधाएं अस्थायी होती हैं और समय के साथ ठीक हो जाती हैं।

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क्या आईवीएफ में जुड़वा या ट्रिपलेट बच्चे अधिक होते हैं?

डॉ. वैशाली जैन ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि पहले ऐसा होता था क्योंकि सफलता बढ़ाने के लिए एक से अधिक भ्रूण गर्भ में डाले जाते थे। लेकिन अब सिंगल एम्ब्रियो ट्रांसफर (SET) तकनीक अपनाई जा रही है, जिससे जुड़वा या ट्रिपलेट गर्भधारण के मामलों में कमी आई है।

क्या आईवीएफ से बाद में प्राकृतिक रूप से गर्भधारण प्रभावित होता है?

नहीं, कई बार आईवीएफ असफल होने के बाद महिलाएं प्राकृतिक रूप से गर्भवती हो जाती हैं। आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान दिए गए हार्मोन और दवाएं महिला की फर्टिलिटी को बेहतर बनाती हैं।

क्या आईवीएफ में डोनर अंडाणु या शुक्राणु का इस्तेमाल जरूरी है?

डॉ. वैशाली जैन ने विस्तार से बताया कि...नहीं, यह केवल विशेष परिस्थितियों में किया जाता है — जैसे महिला के अंडे न बनना या पुरुष के स्पर्म न होना। सामान्यतः सेल्फ (अपने ही) अंडाणु और शुक्राणु को प्राथमिकता दी जाती है।

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पुरुषों में आईवीएफ को लेकर कौन सी गलतफहमियां अधिक दिखती हैं?

डॉ. वैशाली जैन ने समझाया कि, कई पुरुष यह सोचते हैं कि डॉक्टर के पास कोई “मैजिक वैंड” है जिससे तुरंत बच्चा हो जाएगा। जबकि सच यह है कि सफलता दर कई कारकों पर निर्भर करती है — उम्र, स्पर्म क्वालिटी, अंडाणु की स्थिति और इंफर्टिलिटी के कारण। यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जादू नहीं।

क्या समाज में आईवीएफ को लेकर खुलकर बात की जानी चाहिए?

डॉ. वैशाली जैन का मानना है कि बिलकुल,  आईवीएफ से जुड़ी भ्रांतियां तब तक रहेंगी जब तक लोग खुलकर इस पर बात नहीं करेंगे। डॉक्टरों की जिम्मेदारी है कि वे मरीजों को सही जानकारी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जागरूक करें।

क्या सरकार या बीमा कंपनियां आईवीएफ में मदद करती हैं?

डॉ. वैशाली जैन ने जानकारी दी कि, कुछ राज्यों जैसे राजस्थान में सरकार आईवीएफ को सब्सिडी के तहत ला रही है। कई सरकारी अस्पतालों में भी अब आईवीएफ लैब्स स्थापित की जा रही हैं। कुछ बीमा कंपनियां और बैंक भी ईएमआई या वित्तीय सहायता योजनाएं दे रहे हैं, ताकि हर वर्ग के लोग इसका लाभ उठा सकें।

समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए डॉक्टर क्या भूमिका निभा सकते हैं?

डॉ. वैशाली जैन ने अपने विचार रखते हुए कहा कि , डॉक्टर न सिर्फ इलाज करते हैं बल्कि काउंसलर और गाइड की भूमिका भी निभाते हैं। वे मरीजों को वैज्ञानिक तथ्यों के माध्यम से शिक्षित करते हैं और मिथकों को दूर करते हैं। इसके अलावा कई क्लिनिक वास्तविक दंपत्तियों की कहानियां साझा करके लोगों में विश्वास बढ़ा रहे हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो , डॉ. वैशाली जैन का मानना है कि आईवीएफ कोई कृत्रिम तरीका नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक सहायक उपाय है जो मातृत्व के सपने को पूरा करता है। समाज को चाहिए कि वह इस प्रक्रिया को सहजता से स्वीकार करे और भ्रांतियों से ऊपर उठकर इसे “आशा की नई किरण” के रूप में देखे।तो ऐसे में अगर आप भी आईवीएफ के सफर में बढ़ना चाहते है साथ तो संपर्क करें -


Dr. Vaishali Jain 
DIVA IVF N FERTILITY CLINIC (उम्मीद से खुशियों तक)

B-1/45 SECTOR-J ,ALIGANJ,OPP RBI COLONY, Lucknow

CONTACT--7233006885

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