प्रेगनेंसी को लेकर तमाम सवालों के जवाब डॉ वैशाली जैन के साथ
मां बनना हर स्त्री के जीवन का सबसे खूबसूरत, लेकिन सबसे जिम्मेदार सफर होता है। गर्भावस्था के इन नौ महीनों में महिला के शरीर, भावनाओं और दिनचर्या में कई परिवर्तन आते हैं। ऐसे में सही जानकारी, विशेषज्ञ की सलाह और परिवार का सहयोग इस सफर को सुरक्षित और सहज बनाता है। लेकिन प्रेगनेंसी से जुड़े डर, भ्रम और गलतफहमियां आज भी महिलाओं को अनावश्यक तनाव में डाल देती हैं।इन्हीं भ्रांतियों को दूर करने और गर्भवती महिलाओं तक सही मेडिकल जानकारी पहुँचाने के लिए हमने बात की देश की जानी-मानी गायनेकोलॉजिस्ट, आईवीएफ विशेषज्ञ और दीवा IVF लखनऊ की डायरेक्टर डॉ. वैशाली जैन से—जो काफी समय से हजारों महिलाओं को सुरक्षित मातृत्व का अनुभव करा चुकी हैं। महिलाएँ उन्हें उनके अनुभव, सौम्य व्यवहार और सटीक मेडिकल गाइडेंस के लिए बेहद भरोसेमंद डॉक्टर मानती हैं।
प्रेगनेंसी में NT स्कैन क्या होता है?
डॉ. वैशाली जैन के मुताबिक, NT स्कैन एक महत्वपूर्ण स्क्रीनिंग अल्ट्रासाउंड है जिसमें बच्चे की गर्दन के पीछे मौजूद फ्लूइड की मोटाई मापी जाती है। यह मोटाई बढ़ी हुई मिले तो डाउन सिंड्रोम या अन्य क्रोमोसोमल असमानताओं का रिस्क समझ में आता है। उन्होंने साफ बताया कि यह कोई फाइनल टेस्ट नहीं है, बल्कि एक संकेत देने वाला टेस्ट है, और इसकी पॉजिटिविटी को ब्लड टेस्ट से मिलाकर देखा जाता है ताकि सटीक निष्कर्ष निकाला जा सके।

पहली अल्ट्रासाउंड 6–8 हफ्ते में करनी चाहिए या 11–14 हफ्ते में?
डॉ. वैशाली जैन के अनुसार, 6–8 हफ्ते की अल्ट्रासाउंड सबसे महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इसी समय पता चलता है कि प्रेगनेंसी सही जगह लगी है या नहीं, हार्टबीट है या नहीं, और जुड़वा या तीन बच्चे तो नहीं हैं। वहीं 11–14 हफ्ते का NT स्कैन बच्चे की जेनेटिक और शुरुआती डिवेलपमेंटल स्थिति देखने के लिए होता है। उनके मुताबिक दोनों अल्ट्रासाउंड का उद्देश्य अलग-अलग है, इसलिए दोनों बेहद ज़रूरी हैं।
शुरुआती प्रेगनेंसी में ब्लीडिंग कितनी सामान्य है?
डॉ. वैशाली जैन बताती हैं कि शुरुआती हफ्तों में हल्की स्पॉटिंग या इंप्लांटेशन ब्लीडिंग सामान्य होती है और अधिकतर महिलाओं में दिखाई देती है। लेकिन अगर ब्लीडिंग ज्यादा हो, दर्द हो, या लगातार बनी रहे तो यह मिसकैरज का संकेत हो सकता है। ऐसी स्थिति में तुरंत चिकित्सा सलाह लेनी चाहिए। उनका कहना है कि हल्की ब्लीडिंग को लेकर घबराने की जरूरत नहीं, पर भारी ब्लीडिंग को नजरअंदाज भी नहीं करना चाहिए।

मॉर्निंग सिकनेस क्यों होती है?
डॉ. वैशाली जैन के मुताबिक, मॉर्निंग सिकनेस पूरी तरह हार्मोनल बदलाव के कारण होती है और यह एक फिजियोलॉजिकल प्रक्रिया है। यह शरीर का प्रोटेक्टिव रिएक्शन भी माना जाता है, जिससे महिला ऐसी चीजें खाने से बचती है जो शुरुआती प्रेगनेंसी में नुकसानदेह हो सकती हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इससे बच्चे को कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि कई बार यह सामान्य और हेल्दी प्रेगनेंसी का संकेत भी माना जाता है।
प्रेगनेंसी में पपीता और पाइनएप्पल खाना सही है या नहीं?
डॉ. वैशाली जैन के अनुसार, कच्चा पपीता बिल्कुल नहीं खाना चाहिए क्योंकि उसमें पाए जाने वाले पपेन और लेटेक्स गर्भाशय में संकुचन पैदा कर सकते हैं। लेकिन पका हुआ पपीता सुरक्षित है और इसे मॉडरेशन में खाया जा सकता है। इसी तरह पाइनऐप्पल के बारे में फैली गलतफहमियों को दूर करते हुए उन्होंने कहा कि सीमित मात्रा में पाइनऐप्पल भी सुरक्षित है और इससे प्रेगनेंसी को कोई खतरा नहीं होता।
प्रेगनेंसी में हार्टबर्न और एसिडिटी क्यों बढ़ जाती है?
डॉ. वैशाली जैन समझाती हैं कि प्रेगनेंसी के दौरान हार्मोनल बदलाव पेट की मांसपेशियों को ढीला कर देते हैं, जिससे एसिड रिफ्लक्स होता है और जलन महसूस होती है। उनके अनुसार छोटे-छोटे भोजन लेना, मसालेदार और तली चीज़ों को कम करना और ठंडा दूध लेना आराम देता है। जरूरत पड़ने पर सुरक्षित दवाओं का उपयोग भी किया जा सकता है। यह एक सामान्य समस्या है और बच्चे पर इसका कोई गलत प्रभाव नहीं पड़ता।

अगर मिसकैरज हो जाए तो अगली प्रेगनेंसी में क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
डॉ. वैशाली जैन के मुताबिक, पहला मिसकैरज ज़्यादातर फेटल कारणों से होता है और आम माना जाता है। लेकिन अगर बार-बार मिसकैरज हों तो जांच जरूरी होती है जैसे—ब्लड टेस्ट, हार्मोन टेस्ट, अल्ट्रासाउंड और कभी-कभी पति-पत्नी दोनों के क्रोमोसोम टेस्ट। वे कहती हैं कि अगली प्रेगनेंसी में सपोर्टिव दवाएं, समय-समय पर अल्ट्रासाउंड और डॉक्टर की गाइडेंस बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है।
जुड़वा बच्चे कब पता चलते हैं और क्या ट्विन प्रेगनेंसी हाई-रिस्क होती है?
डॉ. वैशाली जैन के अनुसार, 6–8 हफ्ते की अल्ट्रासाउंड में ही पता चल जाता है कि गर्भ में कितने सैक हैं, यानी एक बच्चा है या दो। उनके मुताबिक ट्विन प्रेगनेंसी हमेशा हाई-रिस्क मानी जाती है—चाहे IVF से हुई हो या प्राकृतिक रूप से। इसमें प्रीटर्म डिलीवरी, प्रेशर बढ़ना, एनीमिया और कई बार NICU की जरूरत जैसे जोखिम बढ़ जाते हैं। इसलिए ऐसी प्रेगनेंसी में निगरानी अधिक जरूरी होती है।
डॉ. वैशाली जैन के मुताबिक, प्रेगनेंसी कोई बीमारी नहीं बल्कि एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, बस इसे सही समझ, समय पर जांच और संतुलित जीवनशैली की आवश्यकता होती है। उन्होंने बातचीत में साफ बताया कि इस दौरान सबसे ज्यादा जरूरत होती है—महिला को सही जानकारी, भावनात्मक समर्थन और नियमित मेडिकल फॉलो-अप की। प्रेगनेंसी से जुड़े कई भ्रम आज भी महिलाओं को डराते हैं, जबकि सही गाइडेंस से अधिकांश समस्याओं से आसानी से निपटा जा सकता है।अगर आपको भी प्रेगनेंसी से जुड़ी कोई समस्या है तो संपर्क करें -
Dr. Vaishali Jain
DIVA IVF N FERTILITY CLINIC
(उम्मीद से खुशियों तक)
B-1/45 SECTOR-J ,ALIGANJ,OPP RBI COLONY, Lucknow
CONTACT--7233006885

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