"रथोत्सव में खुलेआम जुआ: परंपरा की ओट में बढ़ती सामाजिक विकृति,प्रशासन मौन"

घरघोड़ा - क्षेत्र में चल रहे पारंपरिक रथोत्सवों के बीच एक गंभीर सवाल बार-बार उठ रहा है — क्या धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के दौरान खुड़खुड़िया जैसे अवैध जुए का आयोजन आवश्यक है? यदि नहीं, तो फिर इसे संरक्षण क्यों मिलता है, और वह भी अक्सर स्थानीय पुलिस की मौन सहमति से? गांवों में आयोजित होने वाले रथोत्सव वर्षों पुरानी धार्मिक परंपरा का हिस्सा हैं। इन आयोजनों के लिए गांव की समितियाँ महीनों पहले से तैयारियाँ शुरू कर देती हैं — श्रम, चंदा और सेवा के माध्यम से ग्रामीणजन पूरे आयोजन को सफल बनाने में जुट जाते हैं। परंतु हाल के वर्षों में इन आयोजनों की पवित्रता पर उस समय प्रश्नचिह्न खड़े हो जाते हैं जब धार्मिक उत्सवों के समानांतर जुए जैसी गैरकानूनी गतिविधियाँ पनपती हैं। ग्रामीण सूत्रों के अनुसार, कई स्थानों पर आयोजन समितियों के नाम पर अवैध खुड़खुड़िया जुए का संचालन खुलेआम किया जा रहा है। आयोजकों द्वारा इसे 'खर्च निकालने' का जरिया बताया जा रहा है, जबकि सामाजिक कार्यकर्ताओं और जागरूक नागरिकों का मानना है कि यह परंपरा नहीं, बल्कि एक सामाजिक विकृति है, जो युवाओं को नैतिक पतन की ओर धकेल रही है। 

जुआ और उसका सामाजिक असर : खुलेआम खेले जा रहे इन जुएबाज़ियों से ग्रामीण जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। • युवा वर्ग लालच की ओर आकर्षित हो रहा है। • महिलाओं में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। • बुजुर्गों को श्रद्धा की बजाय विवशता का अनुभव होता है। • समिति की साख भी सवालों के घेरे में आ जाती है।

पुलिस की भूमिका पर उठते सवाल: चिंता का विषय यह भी है कि कई स्थानों पर स्थानीय पुलिस का रवैया इन गतिविधियों को रोकने की बजाय, मौन समर्थन का रहा है। सूत्रों के अनुसार, जब रथोत्सव के दौरान किसी नए थाना प्रभारी की नियुक्ति होती है, तो वर्षों से पदस्थ कुछ पुलिसकर्मी अचानक 'सक्रिय' हो जाते हैं। इस दौरान नए अधिकारी को स्थानीय परंपराओं, भौगोलिक परिस्थितियों और समाज की बनावट से अवगत होने में समय लगता है — और इसी अंतराल का लाभ कुछ तत्व उठा लेते हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि आयोजन से जुड़ी अवैध गतिविधियों की जानकारी पहले से ही कुछ पुलिसकर्मियों को होती है, जो 'सामंजस्य' के नाम पर उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। इससे न केवल आम नागरिकों में प्रशासन के प्रति अविश्वास बढ़ता है, बल्कि ईमानदार अधिकारियों की छवि भी प्रभावित होती है।

समिति और समाज की भूमिका पर पुनर्विचार की आवश्यकता: प्रश्न यह भी उठ रहा है कि क्या आयोजन समिति को यदि लाभ की आवश्यकता है, तो उसके लिए अनैतिक साधनों का उपयोग स्वीकार्य है? ग्रामीण समाज के अंदर ही ऐसी आवाजें उठने लगी हैं कि परंपरा के नाम पर जुए जैसी गतिविधियों को अब और बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

आमजन और प्रशासन से अपेक्षा: समाज के जागरूक वर्ग और कुछ युवाओं ने स्पष्ट रूप से इस प्रवृत्ति का विरोध किया है। उनका कहना है कि – आयोजनों में पारदर्शिता हो। – समिति द्वारा किए गए प्रत्येक निर्णय की सार्वजनिक जानकारी दी जाए। पुलिस प्रशासन ऐसी गतिविधियों पर कठोर कार्रवाई करे। – और समाज एकजुट होकर रथोत्सव की गरिमा को बनाए रखे।रथ भगवान का प्रतीक है, जो धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश का संदेश देता है। ऐसे में यदि उसी अवसर पर अधर्मपूर्ण कार्य हों, तो यह न केवल आयोजन की गरिमा को धूमिल करता है, बल्कि पूरे समाज के लिए खतरे की घंटी है। समय आ गया है जब आयोजन की आड़ में हो रही अवैध गतिविधियों पर न सिर्फ सवाल उठाए जाएं, बल्कि उन्हें रोकने के लिए ठोस कदम भी उठाए जाएं।

रिपोर्टर : सुनील जोल्हे

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