सूरज निकलने से पहले ही गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को दी गई थी फांसी

आज 15 नवंबर है...वैसे तो आज के दिन से जुड़ी इतिहास में कई घटनाएं दर्ज हैं, लेकिन भारतीय इस दिन को एक ऐसे शख्स के लिए जरूर याद रखते हैं जिसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को गोली मारी थी...जी हां वो था नाथूराम गोडसे...30 जनवरी 1948 को उसने बापू की जान ले ली...शिमला के पास ईस्ट पंजाब हाई कोर्ट में केस चला और 8 नवंबर 1949 को उसे फांसी की सजा दे दी गई...तय हुआ कि 7 दिन बाद ही उसे फांसी पर लटका दिया जाएगा...उस समय देश में काफी गुस्सा था...नाथूराम को अंबाला की सेंट्रल जेल भेजा गया...गोडसे के घरवालों को भी खबर मिल चुकी थी...वे भी अंबाला आ चुके थे...जहां आखिरकार 15 नवंबर को सुबह होने से पहले ही अंग्रेजों के समय में बनी जेल में नाथूराम गोडसे के गले में फांसी का फंदा डाल दिया गया... 

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को विश्व इतिहास के महानतम नेताओं में शुमार किया जाता है...भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए महात्मा गांधी ने जीवन भर अहिंसा और सत्याग्रह का संकल्प निभाया, लेकिन उन्हें आजादी की हवा में सांस लेना ज्यादा दिन नसीब नहीं हुआ...जी हां भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ और 30 जनवरी 1948 की शाम नाथूराम गोडसे ने अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के सीने में तीन गोलियां उतार दीं...गोडसे ने बापू पर तीन गोलियां चलाई थीं और चौथी गोली आप्टे की थी...इस अपराध पर गोडसे और आप्टे को फांसी की सजा सुनाई गई और वह 15 नवंबर 1949 का दिन था, जब दोनों को फांसी दी गई...यह तथ्य अपने आप में दिलचस्प है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोडसे महात्मा गांधी के आदर्शों का मुरीद था, लेकिन एक समय ऐसा आया कि वह उनका विरोधी बन बैठा और उन्हें देश के बंटवारे का दोषी मानने लगा...लेकिन सवाल है कि उन्होंने गांधी को क्यों मारा? क्योंकि उन्हें लगता था कि अहिंसा और हिन्दू-मुस्लिम एकता के गांधी जी के सिद्धांत भारत के लिए, खासकर हिन्दू समाज के लिए, हानिकारक हैं...देश के बंटवारे के बाद फैली हिंसा के माहौल में गोडसे को लगता था कि मुसलमानों के प्रति गांधी जी की उदारता देशद्रोह है...

एक पत्रकार ने बाद में लिखा था कि उस समय फांसी के समय डीएम और उनके स्टाफ को भी मौजूद रहना होता था... मृत्यु होने के बाद पार्थिव शरीर परिजनों को सौंपा जाता था...अगर शव नहीं दिया जाता या कोई लेने नहीं आता तो उसका अंतिम संस्कार भी किया जाता...लेकिन उस दिन अनहोनी की आशंका से शव परिजनों को नहीं दिया गया था... जेल प्रशासन ने ही गोडसे का अंतिम संस्कार कर दिया था...जिलाधिकारी ही तब फांसी दिए जाने वाले शख्स से आखिरी इच्छा पूछते थे और इसका रिकॉर्ड रखते थे...तड़के गोडसे और नारायण आप्टे दोनों को एक साथ फांसी पर लटकाया गया...बताते हैं कि नारायण आप्टे की मौत तुरंत हो गई और गोडसे ने कुछ सेकेंड बाद दम तोड़ा...स्पष्ट निर्देश थे कि अंतिम संस्कार में देरी न हो...जेल में अंतिम संस्कार कर अस्थियां इकट्ठा की गईं...इसे नदी में विसर्जित भी कर दिया गया...बताते हैं कि कोई देखे न इसलिए अस्थियां लेकर गया वाहन नदी से आगे गया और फिर लौटा और बीच धारा में अस्थियां प्रवाहित की गईं...वहीं बापू की हत्या के केस में कोर्ट ने सावरकर को बरी कर दिया था...बाकी 6 लोगों को आजीवन कारावास मिला था...

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