सरसों की खेती किसानों के लिए ला सकती है बहार, ऐसे करें उत्पाद

सरसों की खेती एक महत्वपूर्ण कृषि फसल है, जो मुख्य रूप से ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है। यह भारत में प्रमुख तेल फसलों में से एक है और इसके बीजों से तिलहन (mustard oil) निकलता है, जिसका प्रयोग खाना पकाने में होता है।
सरसों की खेती के लिए प्रमुख बातें:
मौसम: सरसों की खेती ठंडे मौसम में बेहतर होती है। यह 20°C से 25°C के बीच के तापमान में अच्छी तरह से उगती है। सर्दियों के मौसम में इसे उगाना सबसे अच्छा रहता है।
भूमि: हल्की और मध्यवर्ती प्रकार की मिट्टी सरसों की खेती के लिए आदर्श मानी जाती है। जल निकासी वाली मिट्टी में सरसों का पौधा अच्छी तरह से उगता है।
बुवाई का समय:
उत्तर भारत में सरसों की बुवाई अक्टूबर से नवंबर तक की जाती है।
दक्षिण भारत में इसे सितंबर से अक्टूबर तक बो सकते हैं।
बीज की मात्रा: प्रति एकड़ लगभग 4 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
सिंचाई: सरसों को बुवाई के बाद बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन यदि सूखा पड़े तो हल्की सिंचाई करनी चाहिए। फूल आने और बीज बनने के समय पानी की थोड़ी अधिक आवश्यकता होती है।
खाद और उर्वरक:
जैविक खाद जैसे गोबर की खाद या कम्पोस्ट को खेत में अच्छे से मिलाना चाहिए।
रासायनिक उर्वरकों में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की उचित मात्रा का उपयोग करें।
कीट और रोग: सरसों में कई प्रकार के कीट और रोग हो सकते हैं, जैसे कि सफेद मक्खी, सरसों का पतंग, और फफूंदी (ब्लैक रॉट)। इनसे बचाव के लिए समय-समय पर कीटनाशकों और फंगीसाइड्स का छिड़काव किया जाता है।
कटाई: सरसों की फसल को फूल आने के बाद लगभग 90-100 दिन के भीतर काटा जाता है, जब पौधों की फलियों में बीज पूरी तरह से पक जाते हैं। बीज का रंग भूरा हो जाता है और फलियां आसानी से टूटने लगती हैं।
सरसों के फायदे:
सरसों के बीजों से तेल (mustard oil) निकलता है, जिसका उपयोग खाना पकाने के अलावा मसाज, त्वचा पर लगाने और औषधीय गुणों के लिए भी किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण प्रोटीन और ओमेगा-3 फैटी एसिड का स्रोत भी है। इस प्रकार, सही मौसम, मिट्टी, बुवाई, और देखभाल से सरसों की खेती लाभकारी हो सकती है।
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