'मोदी' के बाद 'सावरकर' पर आकर फंसी राहुल गांधी की जुंबान

विपक्षी एकजुटता......ये एक ऐसा मसला है जो राजनीति के इतिहास में कभी भी हल नहीं हुआ ... कभी भी विपक्षी एकता का ऐसा नजारा देखने को नहीं मिला जो, उदाहरण बन गया हो...और शायद आगे भी नहीं होगा , क्योंकि बार बार जुड़ते विपक्ष का बड़े आसानी से टूटते देखा गया है , और ऐसा नजारा अभी हाल में ही देखा गया...जब राहुल गाँधी के मुद्दे पर सारा विपक्ष एक जुट हुआ ...एक स्वर में सभी ने बोला कि राहुल गांधी के साथ गलत किया गया .. लोगों को लगा कि शायद इस बार विपक्षी एकता का कमाल दिख जाए ,मगर ऐसा हुआ नहीं ....1 दिन भी नहीं हुआ कि विपक्षी एकता तार - तार हो गया ... राहुल गांधी के मुद्गे पर जिस तरह से विपक्षी पार्टियां साथ आई ,उससे साफ जाहिर हो रहा था...कि विपक्ष ने तय कर लिया है कि चलो इस बार मोदी सरकार को धूल फंकाते हैं .....लेकिन अफसोस कि खुद एकता पर टिक नहीं पाए ...पहली बार कांग्रेंस को टीएमसी का साथ मिला था... उद्धव सरकार भी हाथ बढ़ा चुकी थी...लेकिन अचानक से हाथ पीछे खीच लिया . और इस दूरी की वजह बने खुद वो नेता जो विपक्ष को साधने का प्रयास करते रहे हैं , यानी कि राहुल गांधी ..... राहुल गांधी के एक बयान फिर से उनका खेल खराब कर गया .. सावरकर पर राहुल गांधी के बयान से नाराज उद्धव ने कांग्रेस से दूरी बना ली ...हाल ही मैं राहुल गाँधी ने कहा था कि मै सावरकर नहीं बल्कि गांधी हूं ...मांफी नहीं मांगूगा .. बस फिर क्या था....शिवसेना नाराज हो गई .. 

राहुल गांधी को अयोग्‍य ठहराए जाने के खिलाफ विपक्ष एकजुट दिखा है... संसद से लेकर सड़क तक विपक्षी दलों के नेता साथ कदमताल करते दिखे. राहुल की सदस्यता जाने Aके बाद सोमवार को जब संसद पहली बार मिली तब नजारा दिलचस्प था.. विपक्षी सांसद काले कपड़े पहनकर आए थे.. संसद तो चली नहीं इसलिए बाहर आकर बीजेपी पर हमला बोला गया.. गांधी प्रतिमा से लेकर विजय चौक तक विपक्षी सांसदों ने मार्च निकाला।..कांग्रेस अध्‍यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे इस मार्च का नेतृत्व कर रहे थे.. करीब सालभर से कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रही तृणमूल कांग्रेसआखिरकार साथ आई.. हालांकि, विपक्ष के कुनबे से एक दल जुड़ा तो एक छिटक गया ...शिवसेना  इस प्रदर्शन से दूर रही... विनायक दामोदर सावरकर पर राहुल की टिप्पणियों ने उद्धव का मन खट्टा कर दिया है...और वो अलग हो गए ... कुल मिलाकर देखा जाए तो विपक्ष में एक आता है , तो एक चला जाता है ... औरप उद्धव ठाकरे ने तो कथित विपक्षी एकता के दावों की भी हवा निकाल दी... 

वहीं अगर कांग्रेस के साथ दिख रही टीएमसी की बात भी करें तो वो भी साथ होकर साथ नहीं है .  कैसे , ये भी बता देंते हैं....TMC ने भले ही अपने दो सांसदों को विपक्ष की बैठकों और मार्च में हिस्सा लेने भेजा हो, मगर संकेत यही हैं कि पार्टी पूरी तरह से साथ नहीं है....राज्यसभा में TMC के नेता डेरेक ओ'ब्रायन ने कहा कि 'बीजेपी ने लाइन क्रॉस कर दी है.. लोकतंत्र, संसद, संघवाद और संविधान को बचाना होगा.. विपक्ष इसके लिए एकजुट है...' यानी TMC कह रही है कि हम सिर्फ इस मुद्दे पर आपके साथ हैं, यानी कि देखा जाए तो केवल मुद्दे पर राजनीति हो रही है .....  तृणमूल ही नहीं, अभी एकजुट नजर आ रहे विपक्ष में कई दल कांग्रेस से दूरी बना लेंगे ...और ऐसा पहले भी होता आया है .. समाजवादी पार्टी, भारत राष्‍ट्र समिति, आम आदमी पार्टी जैसे दल सिर्फ अडानी और राहुल के मसले पर कांग्रेस के साथ खड़े दिखते हैं..

कुल मिलाकर विपक्षी एकता इसलिए एक सुर में नहीं आ सकती , क्योंकि कोई भी पार्टी दूसरे पार्टी के नेतृत्व में आगे नही बढ़ना चाहेगी ....इसीलिए कहीं ना कहीं विपक्षी एकता का सपना हमेशा अधूरा ही रहेगा .. कारण चाहे जो भी रहे .. 

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