सोशल ऑडिट में खुली पारदर्शिता की पोल-पटखौली पंचायत में बिना सचिव,प्रधान व पंचायत सहायक के संपन्न हुआ ऑडिट

सिद्धार्थनगर : विकास खंड लोटन के ग्राम पंचायत पटखौली में मंगलवार को आयोजित सोशल ऑडिट कार्यक्रम ने शासन की पारदर्शिता नीति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह कार्यक्रम, जो योजनाओं की जमीनी सच्चाई उजागर करने के लिए होना चाहिए था, वही खुद अनियमितताओं और लापरवाही का उदाहरण बन गया। बिना जिम्मेदारों के पूरा हुआ सोशल ऑडिट ग्राम पंचायत पटखौली में आयोजित सोशल ऑडिट में न तो ग्राम सचिव, ग्राम प्रधान, पंचायत सहायक और न ही सफाई कर्मचारी मौजूद रहे।
पूरे आयोजन की कमान केवल रोजगार सेवक के कंधों पर रही, जिन्होंने सोशल ऑडिट टीम के साथ मिलकर कार्यक्रम पूरा कराया। सूत्रों के अनुसार, पंचायत भवन में आयोजन के बजाय कंपोजिट पूर्व माध्यमिक विद्यालय पटखौली ली में कार्यक्रम कराया गया। बताया जा रहा है कि पंचायत के कुछ टोले में विरोध की आशंका के चलते आयोजन स्थल बदला गया जो खुद पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न है। केवल औपचारिकता बनकर रह गया कार्यक्रम ऑडिट स्थल पर उपस्थित अधिकांश लोग न तो नरेगा मजदूर थे और न ही योजनाओं से सीधे जुड़े लाभार्थी।
टोला बढ़या और बरगदवा के मजदूरों की कोई उपस्थिति नहीं रही।
इससे सोशल ऑडिट का मुख्य उद्देश्य वास्तविक मजदूरों से योजनाओं के क्रियान्वयन की सच्चाई जानना अधूरा ही रह गया स्थानीय लोगों ने बताया कि ग्राम पंचायत स्तर पर किसी को पूर्व सूचना नहीं दी गई। न तो पंचायत भवन में नोटिस चस्पा किया गया, न ही ग्रामीणों को आमंत्रण मिला। ग्रामीणों का कहना है कि यह पूरा आयोजन औपचारिकता निभाने” के लिए किया गया था।नरेगा अध्यक्ष ने खोली पोल नरेगा अध्यक्ष ने बताया कि “साइट पर कभी 15 तो कभी 16 लेवल तक ही मजदूर रहते थे,लेकिन फोटो खींचकर 60 से 70 मजदूरों की हाजिरी लगा दी जाती थी। रजिस्टर पर हस्ताक्षर बाद में करवाए जाते हैं। इस बयान से साफ है कि नरेगा कार्यों में कागज़ी हेराफेरी आम बात बन चुकी है। जवाब से बचते दिखे ग्राम सचिव जब ग्राम सचिव से इस विषय में मोबाइल पर संपर्क किया गया,तो उन्होंने कॉल रिसीव करने के बाद फोन काट दिया। सवालों से बचना खुद इस बात की पुष्टि करता है कि सोशल ऑडिट की प्रक्रिया में कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य है। इस रवैये से ग्रामीणों के संदेह और गहरे हो गए हैं। ग्रामीणों में आक्रोश, जांच की मांग ग्रामीणों ने मांग की है कि पूरे सोशल ऑडिट की स्वतंत्र जांच कराई जाए। उन्होंने कहा कि जब कार्यक्रम बिना जिम्मेदारों की मौजूदगी,बिना सूचना और बिना वास्तविक मजदूरों की भागीदारी के किया गया,तो पारदर्शिता की उम्मीद कैसे की जा सकती है?ग्रामीणों ने सवाल उठाया जब ऑडिट खुद ही अपारदर्शी तरीके से होगा, तो योजनाओं की सच्चाई कौन बताएगा?दस्तावेज़ों में पारदर्शिता की जगह कागज़ी कार्रवाई स्थानीय सूत्रों ने बताया कि ऑडिट के बाद रजिस्टर पर हस्ताक्षर और मोहर बाद में लगाई जाती है,जिससे पूरा कार्यक्रम सिर्फ कागज़ी रिपोर्ट बनकर रह जाता है। गांव के लोग कहते हैं कि सोशल ऑडिट का मकसद जिम्मेदारी तय करना और जनता को जवाबदेह बनाना था,पर यहां तो रिपोर्ट कमरे के अंदर तैयार कर दी जाती है। जांच से ही आएगी सच्चाई सामने ग्रामीणों का कहना है कि जब तक शासन स्तर से इस पूरे प्रकरण की गंभीर जांच नहीं कराई जाती,तब तक असलियत सामने नहीं आएगी।
सोशल ऑडिट का उद्देश्य जवाबदेही और पारदर्शिता स्थापित करना है, लेकिन पटखौली का यह मामला पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली पर ही सवाल उठाता है। ग्रामीणों की मांग: सोशल ऑडिट टीम की भूमिका, सचिव की अनुपस्थिति और मजदूरों की सूची की जांच कराई जाए। अगर यह प्रक्रिया जांच के घेरे में आई, तो कई नाम सामने आ सकते हैं।
रिपोर्टर : सुशील कुमार खेतान
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